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________________ दिवंगत विभूतियाँ विगत अर्द्ध - शताब्दी में जैन समाज में जितनी विभूतियाँ हुई उतनी विभुतियों इससे पूर्व एक साथ शायद ही हुई हो। सामाजिक परिवर्तन, राजनैतिक परिवर्तन, आर्थिक सुदृढ़ता, प्रेस, समाचार-पत्र आदि सभी ने समाज में नई-नई विभूतियों को जन्म दिया और उन्होंने भी अपने आपको समाज के लिये समर्पित करके रखा। समाज हित का इन महान् आत्माओं ने सदैव ध्यान रखते हुये अपने जीवन को सच्चरित्र एवं निष्कलंक बनाये रखा। समाज ने भी उन्हीं नेताओं को सिर आंखों पर रखा जिन्होंने समाज के हित की सदैव रक्षा की। सन् 1941 से 47 तक का युग स्वतंत्रता का युग था। देश में एवं समाज में स्वतंत्रता सेनानियों का जोर था। राजस्थान में श्री अर्जुनलाल सेठी ने 23 दिसम्बर सन् 1941 की अपनी अंतिम सांस ली। श्री सेठी ऐसे स्वतंत्रता सेनानी रहे थे जिन्होंने कष्ट के सिवाय कुछ नहीं पाया लेकिन स्वतंत्रता के लिये दुःखों की कभी परवाह नहीं की। इसी युग में बैरिस्टर चम्पतराय जी जैन हुये। अपने युग के वे महान थे। उनके हृदय में जैन धर्म के प्रचार की कूट-कूट कर भावनायें भरी हुई थी। इनके द्वारा लिखी हुई " की ऑफ नॉलेज" (Key of knowledge) अपने ढंग की अकेली पुस्तक है। बैरिस्टर साहब ने जैन लॉ लिखकर अभूतपूर्व कार्य किया। उनका निधन 67-68 वर्ष की आयु में दि. 02/06/42 को हो गया । सन् 1940 के पश्चात् सन् 55 तक आचार्य शांतिसागर जी महाराज का समाज पर वर्चस्व रहा और उनके निर्देशों की समाज भी पालना करती रही। उनके विलक्षण व्यक्तित्व से पूरा समाज अपने आपको सौभाग्यशाली मानने लगा। उनके समाधि मरण से विश्व की आँखे उन पर जा टिकी और जैन भ्रमण किस प्रकार मृत्यु का सहर्ष आलिंगन करते हैं इसको विश्व ने प्रथम बार देखा । इन्हीं के समकालोन आचार्य शांति सागर जी छाणी भी हुये। वे भी अपने त्याग एवं तपस्या के कारण समाज में बहु चर्चित रहे । सन् 1944 में उनका समाधिमरण हो गया। इसके अतिरिक्त सन् 58-59 तक सर सेठ हुकमचंद जी सारे समाज के अनभिषिक्त सम्राट् रहे। दि. जैन महासभा एवं दि. जैन खण्डेलवाल महासभा के वे मुकुट रहे । मुनियों के कट्टर भक्त थे। मुनियों पर जहां कहीं भी उपसर्ग आया तो सर सेठ साहब ने अपने प्रभाव का उपयोग किया। उनको संभाज की ओर से इन्दौर स्टेट की ओर से तथा अंग्रेजी सरकार की ओर से बराबर सम्मान प्राप्त होता था और उपाधियों की एक लम्बी सूची बन गई थी। सर सेठ साहब ने सैकड़ों जैन युवकों को रोजगार दिया तथा अपने विद्यालय में पढ़ाकर उनको अंग्रेजी एवं संस्कृत की पूर्ण योग्यता कराई। सेठ हुकमचन्द जी विद्वानों को अपने पास रखते उनसे शास्त्र श्रवण करने तथा कभी-कभी स्वयं भी शास्त्र प्रवचन करते थे। सन् 1940 से 1959 तक का समय सर सेठ हुकमचन्द जी का समय माना जाना चाहिये । सन् 1940 से 64 तक डॉ. कामता प्रसाद जी जैन संस्थापक एवं संचालक अ. दि. जैन मिशन ने सारे देश में अहिंसा के प्रचार प्रचार के लिये अत्यधिक प्रशंसनीय कार्य किया। उन्होंने देश में ही नहीं विदेशों में भी जैन साहित्य भेजकर विदेशियों को जैन बनाया। मिशनरी स्प्रिंट डॉ. साहब ने जितना कार्य किया उसका मूल्यांकन करना कठिन है। डॉ. जैन स्वयं अंग्रेजी एवं हिन्दी के अच्छे विद्वान थे। पुरातत्व एवं इतिहास से उन्हें बहुत प्रेम था। उन्होंने युवकों में मिशन से कार्य करने की भावना भरी । अहिंसा वाणी एवं
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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