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________________ 618/ जैन समाज का वृहद् इतिरास (30-8-1953) एवं श्री सुभाषचन्द (18-9-56) तीनों ही पुत्र आपके साथ कार्य कर रहे हैं। उच्च शिक्षित हैं तथा सामाजिक कार्यों में रुचि लेते हैं। पता- अग्रवाल मैटल वर्क्स लि. रेवाड़ी,(हरियाणा) श्री निर्मलकुमार सेठी भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के ख्याति प्राप्त अध्यक्ष श्री निर्मलकुमार जी सेठी जैन समाज के सर्वोपरि नेता हैं। जब से आपने महासभा की बागडोर अपने हाथ में संभाली है पूरे भारत का सघन दौरा करके समाज में जो अलख जगाया है वही आपकी लोकप्रियता की एक बड़ी भारी उपलब्धि है। दिगम्बर जैन आचार्यों एवं साधु संतों के आप कहर भक्त हैं और उनके प्रति किंचित भी अवमानना सहन नहीं करना आपका विशेष गुण है । जातीय सीमाओं के उल्लंघन के आप घोर विरोधी हैं और अपनी इस विचारधारा का स्थान-स्थान पर प्रबल समर्थन करते रहते हैं। पूरे समाज में सामंजस्य बना रहे तथा वे धार्मिक कार्यों एवं अनुष्ठानों में एक होकर उनका क्रियान्वयन करते रहें यही आपकी सदैव अभिलापा रहती हैं । देश के कोने-कोने में होने वाले पंचकल्याणकों, इन्द्रध्वज विधानों एवं अन्य समारोहों में समाज आपकी उपस्थिति अनिवार्य मानता है और आप भी ऐसे समर्पित श्रेष्ठी हैं कि अधिकांश आयोजनों में पहुंच कर आयोजकों का उत्साह बढाते रहते हैं। सेटी जी बहुत ही कुशल वक्ता हैं। अपनी बात को समझाने में और श्रोताओं के गले उतारने में आप सिद्धहस्त हैं । बोसो बार आपको सुनने के बाद भी सभी श्रोतागण आपको सुने बिना सभा में से उठना नहीं चाहते । आप धारा प्रवाह बोलते हैं और घंटों बोलने में आप खूब माहिर हैं। आचार्यों एवं साधओं का आपको परा आशीर्वाद मिलता रहता है और यह आशीर्वाद ही आपको कठिनाइयों के मध्य आगे बढ़ने में सम्बल प्रदान करता है । आप शुद्ध • खानपान का नियम पूरी तरह पालन करते हैं तथा कहीं मुनि अथवा आचार्य मिल जावे तो फिर | बिना आहार दिये आप वहां से जाना नहीं चाहते। आपका जन्म राजस्थान के नागौर जिले में स्थित डेह ग्राम में हुआ । आपके पिताजी श्रीमती सन्तरा टेवी धर्मपत्नी स्व. श्री हरकचंद जी सेठी अपने जमाने के अच्छे समाजसेवी थे । तिनमुकिया (आसाम) में श्री निर्मल कुपार सेता आपका मुख्य कारोबार था । सेठी जी ने कलकत्ता रहकर मेज्यूएशन किया तथा फिर तिनसुकिया में ही अपने पिताजी के साथ व्यबसाय आरम्भ किया। वहीं आपका विवाह श्रीमती संतरादेवी से हो गया । इनसे आपको दो पुत्र एवं एक पुत्री की प्राप्ति हुई। पुत्री का विवाह ड्रीमापुर के श्री चैनरूप जी बाकलीवाल के सुपुत्र से हो गया है। पुत्र का विवाह आगरा के श्री निरंजनलाल जी बैनाडा के भाई की पुत्री से हुआ है। आपकी धर्मपत्नी बहुत ही सुशील एवं अतिथि सेवा में निपुण हैं | श्री सेठी जी ने सैकड़ों पंचकल्याणकों में भाग लिया होगा । उन्होंने स्वयं ने बीसों इन्द्रध्वज विधान,शांति विधान,चौसठ ऋद्धि विधान, कल्पद्रुम विधान कराये हैं और सौधर्म इन्द्र बनकर अपने जीवन को सार्थक किया है। सम्मेदशिखर जी, बिलारी
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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