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________________ समाज का इतिहास/21 " आर्य समाज के विद्वानों से शास्त्रार्थ : 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में देश में आर्य समाज का बहुत जोर हो गया। स्वामी दयानन्द जी ने सत्यार्थ प्रकाश में जैन धर्म के बारे में जो अनर्गल बातें लिखी थी, उसी के आधार पर आर्य समाजी जहाँ-तहाँ शास्त्रार्थ करने को तैयार हो जाते। अजमेर नगर में आर्य समाजियों से सृष्टि कर्तृत्व, मूर्ति पूजा जैसे विषयों पर दिनांक 30 जून सन् 1912 से 2 जुलाई तक लिखित एवं मौखिक शास्त्रार्थ हुआ। जैनों की ओर से कुंवर दिग्विजयसिंह, पं. गोपालदास बरैय्या तथा आर्य समाजियों की ओर से स्वामी दर्शनानन्द जी ने एवं अन्य दूसरे विद्वानों ने भाग लिया। इनके अतिरिक्त और भी विद्वानों ने समय-समय पर योग दिया। इसमें जैन विद्वानों द्वारा दिये गये तर्क अकाट्य माने गये और बिना किसी निर्णय के शास्त्रार्थ समाप्ति की घोषणा कर दी गई। जैन गजट के वर्ष 17 के कितने ही अंकों में समाज की जानकारी के लिये आर्य समाजियों के प्रश्न एवं उनके उत्तर प्रकाशित हुये है। शास्त्रार्थ की यह परम्परा धीरे-धीरे विकसित होने लगी। इससे जैन समाज में भी जागति आई और जैन विज्ञान शास्त्रार्थ के लिये तैयार होने लगे। इसके बाद तो आर्य समाजियो से शास्त्रार्थों की एक लम्बी परम्परा प्रारम्भ हुई। जैन समाज में शास्त्रार्थ संघ के नाम से एक अलग संगठन की स्थापना हुई। पं. राजेन्द्र कुमार जी न्यायतीर्थ इसके प्रधानम बी। उन्होंने एवं उनके साथ विज्ञान ने आर्य समाजियों से विभिन्न स्थानों में शास्त्रार्थ किये। इन शास्त्रार्थों के कारण एक समय तो ऐसा आया जब पे. राजेन्द्र कुमार जी न्यायतीर्थ को जैन समाज के अत्यधिक लोकप्रिय नेता के रूप में जाना जाने लगा। यह शास्त्रार्यों की परम्परा प. कर्मानन्द द्वारा जैन धर्म स्वीकार करने के बाद कम होती गई। शास्त्रार्थ संघ का अस्तित्व ही समाप्त हो गया और उसके स्थान पर संस्था का नाम दिगम्बर जैन संघ रखा गया। यह संघ वर्तमान में भी चल रहा है। इसका मुख्य कार्यालय चौरासी मथुरा में है तथा वर्तमान में श्री रतनलाल जी गंगवाल अध्यक्ष एवं श्री ताराचन्द जी प्रेमी प्रधानमंत्री हैं। दिगम्बर जैन संघ का मुख पत्र जैन संदेश साप्ताहिक है जो समाज का लोकप्रिय सामाजिक राष्ट्रीय आन्दोलन : सन् 1930 से 50 तक की अवधि में देश में स्वतंत्रता आन्दोलन का जोर रहा और अन्त में सन् 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त करके भारत स्वतन्त्र राष्ट्र बन गया। समाज ने भी स्वतंत्रता आन्दोलन में खूब भाग लिया। अनेको जेल गये। हमारे पास ऐसे सैकडों व्यक्तियों के नाम है जिन्होंने जेल की यातनाये भोगी तथा देश-भक्ति में सबसे आगे रहे। राजस्थान, मध्य भारत, देहली, गुजरात एवं उत्तर प्रदेश की जैन समाज का स्वतंत्रता आन्दोलनकर्ताओं को भरपूर सहयोग रहा। सन् 1947 के पश्चात् उत्तर प्रदेश के श्री अजित प्रसाद जैन को केन्द्रीय खाद्य मन्त्री बनाया गया। मध्य भारत में तख्तमल जैन, मिश्रीलालजी गंगवाल, प्रकाशचन्द सेठी जैसे नेता शासन के सर्वोच्च पदों पर अभिषिक्त हुये। अर्जुन लाल सेठी की सेवा एवं त्याग को देखते हुये जयपुर में आगरा रोड पर अर्जुनलाल सेठी के नाम से एक उप नगर (सेठी कॉलोनी) बसाया गया।
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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