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________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /505 गया: गया को गयाजी कहते हैं क्योंकि यह नगर जैनों, हिन्दुओं एवं बौद्धों तीनों का ही पवित्र नगर है । गया नगर का इतिहास बहुत पुराना है । भगवान महावीर एवं भगवान बुद्ध का यहां पर बिहार होता ही रहा था । गया शहर के दक्षिण दिशा में एक पहाड़ी है। यहां तीसरे तीर्थंकर भगवान संभवनाथ की प्राचीन प्रतिमा है जिसकी जानकारी सर्वप्रथम जनरल कनिंघम ने दी थी। यहां से 70 किमी दूरी पर स्थित कोलूआ पहाड़ तो सम्मेदशिखर का प्रतिरूप है । जिसका प्राचीन पुरातत्व अनेक नये तथ्यों का उद्घाटन करने वाला है । गया में दि, जैन समाज का अस्तित्व हजारों वर्ष पुराना है । जब सम्राट अकबर के प्रधान सेनापति आमेर के महाराजा मानसिंह बंगाल पर चढाई करने गये थे तो उनके प्रधान अमात्य नानू गोधा थे जो दिगम्बर जैन श्रावक थे तथा मोजमाबाद (जयपुर) के रहने वाले थे। उन्होंने अपने साथ बहुत से श्रावकों को साथ लिया था । जब वे बंगाल विजय करके महिजाम जिले से वापिस लौटे थे तथा गया भी पधारे थे जो श्रावक राजा मानसिंह के साथ थे वे गया में ही बस गये थे । जयपुर के दीवान रायचन्द छाबड़ा ने संवत् 1863 में अपने शिखर जी यात्रा में गया जी में पड़ाव किया था। यहां के मंदिर में पूजा उत्सव भी किया था और यहां के निवासी कृष्णचन्द्र पाटनी का आतिथ्य का किया था। इस प्रसारमा जैन समाजमाजमार जैन समाज से बहुत पुराना संबंध है । वर्तमान में उसी परम्पस का निर्वाह हो रहा है। उठो प्रमाती वाले सब नरा.पुनपुन नदी ग्राम देहुरा । दाते कोच गांव परि आय,बहुरी गया जी पहुते जाय । कृष्णचन्द्र श्रावक पाटनी,ताके भक्ति जीनेश्वर तनी । मंदिर जाय सब दर्शन करयो, सकल संघ र आनन्द भयौ । संघ माही दो मंडल मण्डेय ताके पूजन ते सुख बदये । वैश्णव लोग पाये हैं पीण्ड, तीन सौ ब्राहम्ण मांगे दण्ड । ऐसे करिये सुकाम तीन चलिये जबै । आये गंजहुलास किया डेरा तबही । पौष कृष्ण द्वादशी रैनी भावड़ी कहीं ताते तेरस दिन सुकाप करियो सबही । इससे स्पष्ट है कि 17 वीं 18 वीं सदी में जैनियों की वहां अच्छी बस्ती थी।
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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