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________________ जयपुर नगर का जैन समाज/215 ३ T पं. अनूपचन्द न्यायतीर्थ राजस्थान के जैन साहित्य सेवियों एवं कवियों में पं. अनूपचन्द जी न्यायतीर्थ का विशिष्ट स्थान है। अस ५. चैनसुखदासजी के यि शिष्य रहे हैं। आपने डा. कस्तूरचंद कासलीवाल के साथ वर्षों तक कार्य किया तथा राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की ग्रंथ सूचियों के भाग तीन, चार,एवं पांच के सह सम्पादक रहे हैं। आप अच्छे लेखक तथा आशु कवि हैं एवं बाहुबली खंडकाव्य के रचयिता हैं, जिसका प्रकाशन श्री महावीर क्षेत्र के साहित्य शोध विभाग की ओर से हुआ है। आपने गीतांजलि के कतिपय गौतों का पद्यानुवाद किया है तथा अब तक 500 से भी अधिक कविताओं की रचना करके उन्हें विभिन्न जैन पत्र पत्रिकाओं, अभिनन्दन एवं स्मृति ग्रंथों में प्रकाशित कराया है। आपकी लघु रचनायें आचार्य सूर्य सागर पूजा, पदमप्रभु चालीसा, रोहिणी वत पूजा,कांजीबारस पूजा, चन्दन षष्टि व्रत पूजा उल्लेखनीय हैं । अभी आपने दिगम्बर जैन मंदिर जयपुर परिबय स्मारिका का सम्पादन किया है जिसकी सर्वत्र प्रशंसा हुई है। जैन पुरातत्व एवं प्राचीन जैन साहित्य की शोध तथा खोज में आपकी विशेष रुचि है। आप सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं । दि.जैन औषधालय जयपुर के 20 वर्ष तक मंत्री रह चुके हैं । दि.जैन संस्कृत कॉलेज को प्रबन्धकारिणी समिति के सदस्य हैं तथा महावीर निर्वाण शताब्दि समारोह में स्वर्ण पदक से सम्मानित हुए हैं। वर्तमान में आप यंत्रों पर कार्य कर रहे हैं। कोटा कवि सम्मेलन में प्रशस्ति-पत्र से सम्मानित भी हो चुके हैं । आएका जन्म 10 सितम्बर सन् 1922 को जयपुर में हुआ। आपके पिता श्री गोमतीलालजी भावमा जयपुर के सम्माननीय पंडित एवं प्रसिद्ध वस्त्र व्यवसायी थे। सन् 1958 में पिताजी का तथा सन 1978 में माताजी का स्वर्गवास हो गया । आपने मैट्रिक, न्यायतीर्थ एवं साहित्यरत्न की परीक्षायें पास की हैं तथा केन्द्रीय सरकार की सेवा में 37 वर्ष से भी अधिक समय तक रहने के पश्चात् आप सन् 80 में सेवानिवृत्त हुए हैं। आपके दो पुत्र एवं तीन पुत्रियाँ हैं । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती कंचन देवी धर्मपरायण महिला हैं । आपके ज्येष्ठ पुत्र नेमीचन्द चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट है जिसका विवाह सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस श्री नरेन्द्र मोहन कासलीवाल की पुत्री रेणु के साथ हुआ है । दूसरा पुत्र सुरेन्द्र बी कॉम है । तीनों पुत्रियां उर्मिला मंजू एवं प्रमिला एम.ए. हैं जिनका विवाह हो चुका है। पंडित जी की साहित्यिक सेवायें अमूल्य हैं । विगन 4() वर्षों से आपने अपने आपको साहित्य देवता के समर्पित कर रखा है । प्रस्तुत इतिहास के लेखक डा.कासलीवाल के आप अभिन्न मित्र हैं। पता : 769, गोटीकों का रास्ता किशनपोल बाजार,जयपुर- 302603 श्री अनूपचंद बाकलीवाल टौंक (राजस्थान) के मूल निवासी श्री अनूपचन्द बाकलीवाल जयपुर में कांच के व्यवसायी हैं। आपके पिताजी श्री भंवरलाल जी नायब तहसीलदार के पद से सेवानिवृत्त होने के पश्चात् जयपुर में आकर रहने लगे । सन् 1980 में 67 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हो गया । श्री बाकलीवाल का जन्म सन् 1947 को चैत्र शुक्ला तेरस को हुआ। सन् 1963 में
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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