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इतिहास की पृष्ठभूमि
इतिहास लेखन की आवश्यकता
किसी भी देश एवं समाज के जीवन्त होने का प्रमाण उसके इतिहास से मिलता है। यदि उसका इतिहास सुरक्षित है, उसमें उसकी जागृति एवं गतिविधियों का उल्लेख मिलता है, उसके महापुरुषों की जीवन कहानी संग्रहित है, उसके द्वारा सम्पन्न लोकहित के कार्यों का लेखा-जोखा रखा गया है, राष्ट्र के विकास में उसके योगदान का समुचित मूल्यांकन लिपिबद्ध है तो फिर समझिये वह राष्ट्र जाग्रत राष्ट्र है, समाज भी जापत समाज है और उसका इतिहास भी स्वर्णिम पष्ठों में अंकित है। क्योंकि इतिहास वास्तव में सत्य का प्रकाश और जीवन का शिक्षक है। लेकिन हमने हमारे इतिहास को कभी भी क्रमबद्ध लिखने का प्रयास नहीं किया। प्रथम तो जैन समाज में इतिहास के महत्त्व को समझने वाले बहुत कम हुये
और कहीं किसी ने इतिहास लिखने का प्रयास भी किया तो हमने उस व्यक्ति के महत्त्व को नहीं स्वीकारा इसलिए जैन समाज देश का प्राचीनतम समाज होने पर भी उसका कोई क्रमबद्ध इतिहास नहीं मिलता। आज इस बात की महती आवश्यकता है। सभी उपलब्ध ऐतिहासिक सामग्री को संग्रहित करने के पश्चात् काल विशेष के इतिहास लेखन के हमारे प्रयत्न जितने अधिक निष्पक्ष, सजीव एवं न्यायपूर्ण होंगे, वह इतिहास उतना ही रोचक, ज्ञानवर्धक एवं सत्य के निकट होगा ।
इतिहास लेखन के स्रोत :
इतिहास लेखन के स्रोतों का सुरक्षित मिलना बड़ा कठिन है। प्रथम तो हमने स्वयं ने ऐसे स्रोतों को सुरक्षित रखने का प्रयास नहीं किया। दूसरा हमने अपने आपको यश, ख्याति, प्रसिद्धि से दूर रखा और ऐतिहासिक कार्य सम्पादन के पश्चात् भी उसका कहीं उल्लेख करना उचित नहीं समझा। हमारी इस भावना ने भी इतिहास के स्रोतों को अनुपलब्ध रखा। तीसरा इतिहास स्रोतों की उपलब्धि इसलिये भी कठिन रही कि नवमी शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी के उत्तराध्द तक देश पर विदेशियों के आक्रमण होते रहे जिनसे प्राचीन इतिहास जानने के माध्यम ही नष्ट हो गये। अधिकांश साधनों को आक्रान्ताओं ने नष्ट कर दिया और इतिहास के कुछ साधन काल गति के प्रभाव से स्वत: नष्ट हो गये। लेकिन इतिहास के स्त्रोतो का इतना विनाश होने पर भी जो कुछ सामग्री बची सुई है यदि उसको भी हम संकलित करके उसका विशिष्ट अध्ययन कर सके तो भगवान महावीर के बाद का इतिहास तो फिर भी लिखा जा सकता
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इतिहास के स्रोतों को हम निम्न प्रकार विभाजित कर सकते हैं :