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________________ 56/जैन समाज का वृहद् इतिहास ग्रंथ का प्रकाशन विगतरत्न पं. सुमेस्चन्द दिवाकर अभिनन्दन समारोह समिति जबलपुर ने किया। अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रथम खण्ड में अभिवादन एवं संस्मरण है तथा शेष पाँच खण्ड विभिन्न विषयों में बटे हुए है। विद्वत अभिनंदन ग्रंथ यह अभिनंदन ग्रंथ किसी एक विद्वान का अभिनंदन ग्रंथ नहीं है किन्तु सम्पूर्ण जैन समाज के 201 साधु साध्वियों, क्षुल्लक, ऐलक, आर्यिका, भुल्लिका, ब्रह्मचारी एवं ब्रह्मचारिणियों का सामान्य परिचय सहित है। साथ में 467 विद्वानों एवं विदुषियों का सामान्य किन्तु पूरी जानकारी के साथ परिचय दिया गया है। यह ग्रेथ पूरे विद्वत समाज एवं साधु समाज का प्रतिनिधित्व करता है। परिचय प्रस्तुत करने में संपादक मंडल के सभी सदस्यों ने जिनमें पं. रत्न डॉ. लाल बहादुर शास्त्री, पं. बाबूलाल जमादार, पं. विमलकुमार सोरया शामिल है प्रशंसनीय कार्य किया है। इतने साधुओं एवं विद्वानों का परिचय जुटाना, लिखना बहुत ही श्रम साध्य कार्य है। ग्रंथ का प्रकाशन सन् 1976 में हुआ था। परिचय के अतिरिक्त इसमें कुछ विद्वानों के लेख भी है। आचार्य महावीर कीर्ति स्मृति ग्रंथ ___ आचार्य महावीर कीर्ति जी अपने युग के विशिष्ट आचार्य थे। आचार्य विमलसागर जी महाराज उन्हीं के शिष्य है। क्षुल्लक शीतलसागर जी भी उन्हीं के एक सुयोग्य शिष्य है। वे ही इस स्मृति ग्रंथ के सूत्रधार एवं प्रेरणा स्रोत रहे है। उन्हीं की प्रेरणा से आचार्य महावीर कीर्ति दि. जैन धर्म प्रचारिणी संस्था आवागढ़ (एटा) उत्तर प्रदेश ने प्रस्तुत स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन कराया है। इसके संपादक मंडल में डॉ. लाल बहादुर शास्त्री, 4. वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री, पं. महेन्द्र कुमार महेश, प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जैन एवं 4. धर्मचन्द शास्त्री का नाम है। इसकी प्रकाशन तिथि महावीर जयन्ती सन् 1978 है। स्मृति ग्रंथ पाँच खंडों में विभाजित है। प्रथम खंड में श्रद्धान्जलियों एवं संस्मरण है। द्वितीय खंड में आचार्य श्री के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला गया है। तृतीय खंड में जैन धर्म और दर्शन पर, चतुर्थ खंड में इतिहास पर तथा पांचवे खंड में अवशिष्ट लेख है। आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज अभिवन्दन ग्रंथ ___ आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज आचार्य श्री शांतिसागर जी के तीसरे पट्टाधीश शिष्य थे। वे स्वभाव से अक्खड़ किन्तु मुनि चर्या में एकदम खरे साधु थे। श्री दिगम्बर जैन नवयुवक मंडल कलकत्ता ने उनको सार्वजनिक रूप से अभिवन्दन करने के लिये एक विशालकाय अभिवंदन ग्रंथ का प्रकाशन कराया। ग्रंथ का सम्पादन पं. धर्मचन्द जी शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने किया। ग्रंथ समर्पण समारोह में आचार्य धर्मसागर जी महाराज नहीं पधारे और उन्होंने ग्रंथ को स्वीकार भी नहीं किया। लेकिन यह विशालकाय अभिवन्दन ग्रंथ प्रथम खंड विनयांजलि, संस्मरण एवं शुभकामनाओं से युक्त है। दूसरे खंड में उनके विशाल व्यक्तित्व पर लेखों का संग्रह है। तृतीय खंड चित्रमाला का है। चतुर्थ खंड में काव्यांजलि प्रस्तुत की
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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