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________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /389 श्री त्रिलोकचन्द कोठारी; जैन समाज के वरिष्ठतम नेताओं एवं समाजसेवियों में श्री त्रिलोकचन्द जी कोठारी को विशेष स्थान प्राप्त हैं। जब से कोठारी जी ने दि. जैन महासभा के महामंत्री का पद स्वीकार किया है तथा लगातार 10-12 वर्षों तक उत्तर से दक्षिण एवं पूर्व से पश्चिम तक विभिन्न प्रदेशों में जाकर समाज को जोड़ा है तथा स्वयं उससे जुड़े हैं उनके व्यक्तित्व का अखिल भारतीय स्वरूप हो गया है। अब कोटा अथवा राजस्थान तक ही सीमित नहीं रहे पूरे देश के प्रिय नेता हो गये हैं 1 श्री कोठारी जी का जन्म 11 जून सन् 1927 को दून माम में हुआ। आपके पिता श्री सोहनलाल जी गांव में दुकान करते थे कोठारी जो की पाता का नाम जड़ावदेवी था । अपने माता पिता के इकलौती संतान होने के कारण शिशु कोठारी का लालन-पालन भी बड़े लाड़ प्यार से हुआ। आपने 1.4 की आयु में मिडिल पास किया और घर का कामकाज करने लगे । 28 फरवरी सन् 1946 को आपका विवाह हिण्डोली ग्राम में लालाबक्स जी सोनी की पुत्री सुश्री लाड़देवी के साथ संपन हुआ | उनसे आपको पांच पुत्र एवं तीन पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके एक पुत्र श्री ओम प्रकाश कोठारी का सन् 1973 में अकस्मात दुःखद निधन हो गया। आपके चारों पुत्र सर्व श्री चन्द्रप्रकाश कोठारी, धर्मप्रकाश कोठारी, श्री कुलदीप कोटा एवं श्री सुनील कोठारी उच्च शिक्षित टेक्निकल ज्ञान से ओतप्रोत कुशल प्रबंधक एवं पिता के आज्ञाकारी हैं। चारों हो पुत्रों का विवाह हो चुका है। आपकी तीनों पुत्रियाँ चन्द्रकान्ता, मधु एवं रितु इंदिरा का विवाह हो चुका है। श्री कोठारी जी ने अपना जीवन खादी प्रचार एवं भूदान आंदोलन के कार्यकर्ता के रूप में प्रारंभ किया । इससे यह लाभ हुआ कि आपको विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण, हीरालाल शास्त्री, गोकुल भाई भट्ट जैसे शीर्षस्थ नेताओं से संपर्क में आने का सुअवसर प्राप्त हुआ। सन् 1959 से वे उद्योग की ओर मुड़े। नगर निर्माण में ठेकेदारी का काम हाथ में लिया। फिर नहरों के गेट्स लगाने का ठेका लेने लगे और फिर बड़े-बड़े बांधों के गेट्स लगाने का काम लिया और सन् 1979 तक पिछले 20 वर्षों के लगातार परिश्रम के बाद वे कुशाग्र उद्योगपति बन गये । सन् 1981 में इन्स्टीट्यूट आफ सेल्फ डिफेन्स एण्ड नेशनल करेक्टर किशनगंज देहली की ओर से आपको स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। इसके पश्चात् सन् 1983 में भारत के उपराष्ट्रपति हिदायतुल्ला ने स्वयं के प्रयासों से उद्योगपति बनने के उपलक्ष में उद्योग पत्र देकर सम्मानित किया। कोठारी जी बराबर अपने उद्योगों में आगे बढ़ रहे हैं और वर्तमान में देश के प्रमुख उद्योगपतियों में आपका स्थान बनने लगा है। सामाजिक क्षेत्र में वे सन् 1979 में चांदखेडी अ. क्षेत्र के अध्यक्ष बनकर आगे आये। वे क्षेत्र के दस वर्ष तक अध्यक्ष रहे और उसके विकास में विशेष योगदान दिया। जनवरी सन् 1981 में आप अ.भा. दि. जैन महासभा के महामंत्री बनाये गये और उसके बाद तो अपने आपको समाज सेवा में ही समर्पित कर दिया। इसी वर्ष भगवान बाहुबली सहस्त्राब्दि महामस्तकाभिषेक में सम्मिलित हुये और वहीं पर महासभा का अधिवेशन बुलाया गया। पिछले 10 वर्षों में वे सारे समाज से जुड़ गये। बीसों संस्थाओं के महामंत्री, अध्यक्ष एवं संरक्षक हैं। श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी एवं जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान के वे संरक्षक हैं। कोठारी जी कट्टर मुनि भक्त हैं। प्रतिवर्ष चातुर्मास में अथवा अन्य समय में मुनिराजों के दर्शनार्थ जाते रहते हैं। उन्हें आहार देकर एवं व्यवस्था में आर्थिक योगदान देते रहते हैं। मुनिसंघों के विहार में भी अपना सक्रिय सहयोग देते हैं। अब तक आचार्य शिवसागर जी को कोटा से महावीर जी तक, , आचार्य विद्यानंद जी मंदसोर से महावीर जी तकं, आचार्य विद्यासागर जी
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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