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________________ अभिनन्दन ग्रंथों के प्रकाशन का उदभव एवं विकास जैन समाज में सामाजिक कार्यों में समर्पित समाज सेवियों एवं साहित्य लेखन में समर्पित विद्वानों का अभिनन्दन समारोह आयोजित करके अभिनन्दन ग्रंथ समर्पण की विगत पचास वर्षों के सामाजिक इतिहास की एक उल्लेखनीय घटना है। सन् 1940 के पूर्व समाज के किसी भी समाज सेवी एवं विद्धान को अभिनन्दन ग्रंथ भेंट नहीं किया गया। लेकिन जब अन्य समाजों में एवं साहित्य सेवियों में अभिनन्दन ग्रंध समर्पण की परम्परा का विकास होने लगा तो जैन समाज ने भी इस परम्परा को अपना लिया और विगत 50 वर्षों में इस परम्परा का अच्छा विकास हुआ। इससे इतना लाभ अवश्य हुआ कि अभिनन्दनीय व्यक्ति के जीवन पर, उसकी सेवाओं पर, साथ में साहित्य, दर्शन, इतिहास एवं पुरातत्व पर अच्छी सामग्री सामने आई तथा अभिनन्दनीय व्यक्ति की सेवाओं को सामाजिक एवं सार्वजनिक स्तर पर मान्यता दी गई। स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन भी अभिनन्दन करने की परम्परा का ही दूसरा स्प है। सामाजिक दृष्टि से महान् व्यक्तियों के निधन के पश्चात् उसका स्मृति ग्रंथ प्रकाशित होना स्वर्गवासी व्यक्ति के व्यक्तित्व की विशालता का द्योतक है एवं उसकी साहित्यिक अथवा सामाजिक सेवाओं की स्वीकृति है। जैनाचार्यों, आर्यिकाओं का अभिनन्दन ग्रंथ अथवा स्मृति ग्रंथ प्रकाशन भी इसी परम्परा का एक विकसित रूप है। प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ : अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशन परम्परा का "प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ" से उद्घाटन हुआ। श्री नाथूराम प्रेमी ने हिन्दी ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय के माध्यम से हिन्दी साहित्य की जितनी सेवा की तथा जैन साहित्य के शोध पूर्ण लेखों के लिखने एवं ग्रंथों के प्रकाशन में जो योग दिया वह सदा स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। अक्टूबर सन् 1946 में प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ का प्रकाशन एवं समर्पण हुआ। उनके अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन में देश के समस्त हिन्दी जगत का योगदान रहा जिनमें राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त, पं, सुन्दरलालजी, पं. माखनलाल चतुर्वेदी, सियाराम शरण गुप्त, जैनेन्द्र कुमार जी, डॉ. रामकुमार वर्मा जैसे हिन्दी जगत के प्रकाण्ड विद्वानों का नाम उल्लेखनीय है। प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ समिति का डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल को अध्यक्ष बनाया गया और यशपाल जी जैन को मंत्री । अभिनन्दन ग्रंथ में 18 विभाग रखे गये और एक एक विभाग के सम्पादन का भार दो-दो, तीन-तीन, चार-चार, उच्च स्तरीय विद्वानों को दिया गया। जैन दर्शन विभाग का संयोजक प्रो, दलसुख मालवणिया, संस्कृत, प्राकृत विभाग का संयोजक डॉ. हीरालाल जैन, डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल को पुरातत्व का, आचार्य जुगल किशोर मुख्तार को जैन दर्शन, समाज सेवा का श्री अजित प्रसाद जैन एवं नारी जगत का श्रीमती सत्यवती मलिक को संयोजक बनाया गया। वास्तव में श्री नाथूराम प्रेमी से सारा हिन्दी जगत किसी न किसी रूप में उपकृत रहा। उनके अभिनन्दन ग्रंथ में इन मनीषियों ने अपनी हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त की तथा प्रेमी जी के विशाल व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला वह अपने आप में अनूठा है। आठ खण्डों एवं 750 पृष्ठों में प्रकाशित यह अभिनन्दन ग्रंथ एक आदर्श अभिनन्दन ग्रंथ है तथा भविष्य में प्रकाशित होने वाले अभिनन्दन ग्रंथों का वह मार्गदर्शक रहा
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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