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________________ 52/ जैन समाज का वृहद् इतिहास है। पूरी सामग्री खोजपूर्ण तथा उच्च स्तरीय है। सर सेठ हकमचन्द अभिनन्दन ग्रंथ : जैन समाज के वर्षों तक एक छा अनभिषिक्त सम्राट् रहने वाले सर सेठ हुकमचन्द जी का सार्वजनिक अभिनन्दन यद्यपि कितनी ही बार आयोजित हो चुका था। जब वे अपने व्यवसाय में शिखर पर थे। यौवन उनके साथ था। राजसी ठाट-बाट के वे अभ्यस्त थे। जहाँ भी वे जाते लोग उन्हें देखने मात्र को ही उमड़ पड़ते। वे हाबल्या काबल्या के नाम से प्रसिथे। लेा साल में इररी पूरी किशी मी वाटी को इतनी प्रसिद्धि नहीं मिली थी। 13 मई सन् 1951 को एक अभिनन्दन ग्रंथ निकाल कर उनका सार्वजनिक अभिनन्दन किया गया। उनका जन्म 1874 की 14 जुलाई मंगलवार को हुआ और यह समारोह सन् 1951 की 13 मई रविवार को. अर्थात उस समय सेठ साहब की आय 77 वर्ष की थी। अभिनन्दन समारोह क्या था एक प्रकार से विशाल मेला था। जैन समाज में अभिनन्दन ग्रंथों का प्रारम्भ होना था। इसके पूर्व समाज ने किसी भी श्रेष्ठी अथवा विद्वान को अभिनन्दन ग्रंथ मेंट नहीं किया था। प्रकाशक के वक्तृत्व के अनुसार पूरा अभिनन्दन केवल एक दो माह की तैयारी के बाद निकला था। अभिनन्दन ग्रंथ में कोई खण्ड नहीं है। प्रारम्भ से सेठ साहब के जीवन, विभिन्न नेताओं, समाज सेवियों, व्यापारियों एवं संस्था अधिकारियों की शुभकामनायें. संस्मरण एवं उनके विशाल व्यक्तित्व का गुणगान है। इसके आगे जैन धर्म से सम्बन्धित विशिष्ट लेखों का संग्रह है। फिर बहत लम्बी चित्रावली है। अभिनन्दन ग्रंथ को सम्पादन करने का श्रेय श्री सत्यदेव विद्यालकार, पं. खूबचन्द जी शास्त्री, प, सुमेस्चन्द दिवाकर, पं. कैलाशचन्द जी शास्त्री, पं. इन्द्र लाल जी शास्त्री, पं. नाथूलालजी शास्त्री, पं. मक्खनलाल जी शास्त्री, पं. अजित कुमार जी शास्त्री को जाता है। ग्रंथ के प्रकाशक महामंत्री अ.भा. दि.जैन महासभा है। ब्र.पं. चन्दाबाई अभिनंदन ग्रंथ ब्र.पं. चन्दा बाई जी का जीवन आदर्शों का जीवन रहा है। अपने विवाह के केवल एक वर्ष पश्चात् वैधव्य जीवन से आक्रान्त चन्दा बाई ने स्वयं अपने जीवन का निर्माण किया। वह कुलवधू से मौं श्री बन गई। सबकी श्रद्धा की पात्र बन गई। मां श्री ने समस्त विश्व को सुखी बनाने का संकल्प लिया। जब वे 60 को पार कर गई तो उनके अभिनन्दनीय जीवन को अभिन्दन ग्रंथ समर्पित करके उनके जीवन की सुरभि को देश-विदेशों में फैलाने का विचार किया गया। अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित किया गया और सन् 1954 में एक भव्य समारोह में उसे भेट किया गया । इस अभिनंदन ग्रंथ के सम्पादन में डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, श्री जिनेन्द्र कुमार जैन, श्री बनारसीदास चतुर्वेदी, श्री नेमिचन्द्र शास्त्री आरा एवं डॉ. श्री शूविंग ने पूर्ण सहयोग दिया। ग्रंथ के प्रधान संपादक श्री अक्षयकुमार जैन एवं श्री जैनेन्द्र कुमार जैन ने अभिनंदन ग्रंथ को आठ भागों में विभक्त किया । ग्रंथ की संपादिका श्री सुशीला सुलतान सिंह जैन देहली, एवं
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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