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________________ समाज का इतिहास / 5 यह संख्या तो उनके संघ की थी। उनके अनुयायियों की संख्या तो करोड़ों में होनी चाहिये। उनके युग में पूरा देश चार वर्णों में विभक्त था तथा व्यवसाय के आधार पर समाज की पहचान होती थी। वर्ग भेद तो था लेकिन समाज भेद नहीं था। महावीर के पश्चात् अन्तिम श्रुत केवली भद्रबाहु स्वामी ने जब अपना संघ लेकर सम्राट् चन्द्रगुप्त के साथ दक्षिण भारत की ओर विहार किया तो उनके साथ 12 हजार साधु थे । जब इतनी बड़ी संख्या में साधुओं का बिहार हो सकता है तो समाज की कितनी विशाल संख्या होगी। उनके युग में पूरा का पूरा गाँव ही जैन धर्मानुयायी होता था । यह स्थिति तो महाराष्ट्र में आज भी कहीं-कहीं देखी जा सकती है। जातियों की संरचना : महावीर निर्वाण के पश्चात् जैनाचार्यों द्वारा सामूहिक रूप में नगर एवं ग्राम वासियों को जैन धर्म में दीक्षित किया जाने लगा। जितनी भी वाल संज्ञकं जातियां हैं उनके पूर्वज सामूहिक रूप में जैन धर्म में दीक्षित हुये थे। यह "वाल" किसी नगर विशेष के नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ। अग्रोहा से अग्रवाल, खंडेला से खण्डेलवाल, बघेरा से बघेरवाल, ओसिया से ओसवाल, जैसलमेर से जैसवाल, मेडता से मेड़तवाल, जातियों के नाम इसी तरह से पड़े हुये है । जातियों की सुरक्षा की दृष्टि से जाति बन्धन को कड़ा कर दिया गया और विवाह शादी अपनी ही जाति में करने को धर्म की संज्ञा दी गई। अपनी जाति वालों को भोजन कराने में पुण्य माना जाने लगा। धीरे-धीरे जातियों का सम्बन्ध ऐतिहासिक काल से जोड़ा जाने लगा और अपनी जाति को उत्कृष्ट एवं अन्य जाति वालों को हीन दृष्टि से देखा जाने लगा और इस प्रकार जाति बन्धन को धीरे-धीरे धर्म का बाना पहना दिया गया। एक धर्म, एक संस्कृति एवं एक विचारधारा वाले सिद्धान्त को उत्तम माना गया। जातियों की संख्या घटती-बढ़ती रही । यद्यपि 84 जातियों की संख्या रुढ़ मानी जाने लगी लेकिन देश में दिगम्बर जैन समाज में ही 250 से अधिक जातियाँ पैदा हो गई। 237 जातियों के नाम तो हमने खण्डेलवाल जैन समाज के वृहद् इतिहास में गिनाये हैं। ये जातियाँ तो 300-400 वर्ष पहले ही 1. अस्तित्व में थीं। मुस्लिम काल में जैन धर्म और समाज : मुस्लिम काल में प्रायः युद्ध हुआ करते थे और इन युद्धों में हार-जीत के पश्चात् विजेता मुस्लिम शासकों द्वारा मन्दिरों एवं मूर्तियों को लूटा एवं तोड़ा जाता था। यही नहीं मूर्ति भजन के पश्चात् नगरवासियों को भी धर्म परिवर्तन करने पर जोर देना तथा सम्पत्ति को लूटना-खसोटना आम बात थी। अतिशय क्षेत्र केशोरायपाटन, ग्वालियर किले में विराजमान मूर्तियाँ, इसके साचात् प्रमाण है। अजमेर का दाई दिन का झोपड़ा, वहाँ की प्रसिद्ध ख्वाजा साहब की दरगाह पहले जैन मन्दिर थे ऐसी इतिहासकारों की भी मान्यता है। मुस्लिम काल में कुछ अपवादों को छोड़कर शेष काल में मुस्लिम शासन जैन संस्कृति के लिये भी भक्षक साबित हुआ। जो कुछ बचा रहा अथवा निर्मित हुआ वह या तो यहाँ के राजपूत 1. खण्डेलवाल जैन समाज का वृहद् इतिहास पृष्ठ संख्या 44
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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