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________________ 82/ जैन समाज का बृहद् इतिहास कोहिमा से मूर्तियों का स्थानान्तरण द्वितीय विश्वयुद्ध में कोहिमा पर जापानियों का आक्रमण हो गया। सभी जैन परिवार वहां से डीमापुर आ गये। अंग्रेजों ने दिगम्बर जैन मंदिर को चावल की बोरियों से भर दिया। उन्हें कौन रोकने वाला था। भगवान की मूर्ति भी बोरियों की ओट में आ गई। फूलचंद जी को चैन कहां। वे रात दिन प्रतिमाओं को लाने की योजना बनाने लगे और एक दिन अपने जीवन को जोखिम में डाल करके वे कोहिमा गये। मंदिर में घुसकर मूर्तियों को निकाला और सभी प्रतिमाओं को सुरक्षित रूप से डीमापुर आये । प्रतिमाओं को शिखर जी के मंदिर में विराजमान करने के पश्चात् ही उन्हें शांति मिली। फूलचंद जी के साहस एवं धार्मिक भावना की चारों ओर प्रशंसा होने लगी और पर्याप्त समय तक वे चर्चा के त्रिषय बने रहे । 2500 वां महावीर परिनिर्वाण महोत्सव सेठ फूलचंद जी सेठी ने भगवान महावीर 25000 वां परिनिर्वाण महोत्सव वर्ष में सारे पूर्वाञ्चल प्रदेश में अहिंसा धर्म का जो धुआंधार प्रचार किया तथा पूरे जैन समाज को एक झण्डे के नीचे लाकर उसमें भावानात्मक एकता पैदा को उसकी सर्वत्र प्रशंसा की गई । सेठी जी के सतत् प्रयास से ही पूर्वोत्तर भारत में नागालैण्ड प्रान्तीय सरकार ने एक लाख की धनराशि भगवान महावीर का निर्वाण महोत्सव मनाने के लिये दी। नागालैण्ड शासकीय समिति के सेठी जी महामंत्री भी थे। नागालैण्ड में निर्वाण महोत्सव की यादगार को चिरस्थायी बनाने के लिये जो कॉलम बनाया गया उसका शिलान्यास भी 11 दिसम्बर, 1974 को हजारों जैन, अजैन जनता की उपस्थिति में आप ही के कर कमलों द्वारा हुआ था । इस तरह आपकी प्रेरणा के फलस्वरूप डीमापुर में आम जनता की भलाई के लिये भगवान महावीर दातव्य औषद्यालय की स्थापना की गई थी । आपकी प्रशंसनीय समाज सेवा के कारण नागालैण्ड सरकार द्वारा 15 अगस्त, 1975 को भारत के 29 वें स्वतंत्रता दिवस के भव्य समारोह में महामहिम राज्यपाल नागालैण्ड ने प्रशंसा पत्र देकर आपको सम्मानित किया । महाप्रयाण : सेठीजी का जीवन जितना सौम्य एवं संवेदनशील रहा उतना ही उनका महाप्रयाण दिवस भी रहा । उनका जैसा महाप्रयाण तो साधुओं को भी दुर्लभ होता है। 2 अक्टूबर, 76 को उन्होंने आर्यिका इन्दुमती जी के समक्ष मंदिर में णमोकार मंत्र का उच्चारण करते हुये जीवन लीला समाप्त कर दी। स्व. श्री भंवरीलाल जी बाकलीवाल अभिनन्दन ग्रंथ एवं स्मृति ग्रंथों के शीर्षक के अन्तर्गत श्री भंवरीलाल जी बाकलीवाल का परिचय दिया जा चुका है। बाकलीवाल जी पूर्वाचल प्रदेश के प्रभावी समाज सेवी थे। सामाजिक गतिविधियां, साधुओं की सेवा एवं विद्वानों के स्वागत सत्कार में वे पूर्ण रुचि लेते थे। वे वर्षों तक महासभा के अध्यक्ष रहे और उसके माध्यम से सामाजिक आयोजनों में खूब भाग लिया । कहते हैं उनको अपना निकट समय ज्ञात हो गया था इसलिये उसके पूर्व वे उदयपुर ईडर जाकर मुनिराजों के दर्शन करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करके अपने ग्राम लालगढ़ आ गये और अक्टूबर सन् 1967 को अपने पूरे कुटुम्बी जनों के समक्ष आत्म चिंतन में लवलीन .होकर सदा के लिये चले गये। बाकलीवाल जी व्यक्ति नहीं संस्था थे। उनके चले जाने से समाज की गहरी क्षति हुई ।
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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