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________________ 94/ जैन समाज का वृहद् इतिहास श्री चैनरूप बाकलीवाल जन्म तिथि:9 अगस्त,सन् 1936 S शिक्षा : गौहाटी विश्वविद्यालय से सन् 1957 में बी.कॉम. । श्री चैनरूप बाकलीवाल स्त्र, श्री भंवरीलाल जी बाकलीवाल के चतुर्थ पुत्र हैं। स्व, बाकलीवाल जी दि. जैन महासभा के अध्यक्ष थे और अपने जमाने के समाज के राष्ट्रीय नेता माने जाते थे। बाकलीवाल जी की माता श्रीमती मलख देवी धर्म परायणा महिला रत्न थीं जिनका स्वर्गवास हुये 20 से भी अधिक वर्ष हो गये । बी.कॉम.करने के एक वर्ष पश्चात् वाकलीवाल जी का सन् 1958 में राय साहब चांदमल जी पाण्ड्या की सुपुत्री श्रीमती सुशीला देवी के साथ विवाह हुआ। राय साहब भी महासभा के बहुचर्चित अध्यक्ष रहे । इस तरह भाग्य से चैनरूप जी को समाज के बहुचर्चित नेता के रूप में ससुर एवं पिताश्री दोनों का ही शुभाशीवाद मिलता रहा। बाकलीवाल जी ने विवाह के पूर्व ही मोटर व्यवसाय प्रारम्भ कर दिया था जिसमें उन्हें अच्छी सफलता प्राप्त हुई । वैसे तो आपके तीन बड़े भाई सर्व श्री नथमल जी, प्रसत्र कुमार जी एवं मन्नालाल जी हैं जिनका सभी का परिचय भी प्रस्तुत इतिहास में दिया है एवं तीन बहिनों का भाग्यशाली परिवार है । आप स्वयं को भी दो पुत्र एवं एक पुत्री का पिता बनने का सौभाग्य मिला है। आपके दोनों पुत्र संजय बाकलीवाल एवं अरुण बाकलीवाल उच्च शिक्षित युवक | हैं। संजय कुमार का जन्म 3 फरवरी 1962 को हुआ। उसने भी अपने पिताजी के पदचिन्हों पर चलते हुये बी.कॉम. तक अध्ययन किया तथा मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध व्यवसायी एवं समाज नेता श्री पारस कुमारजी गंगवाल की पुत्री प्रीति के साथ विवाह हुआ । अपने पिता एवं पितामह के समान संजय भी सेवाभादी युवक हैं तथा एक बालिका की जान बचाने के कारण आपको सुशीला देवी धर्मपत्नी चैनरूप वीरता का राष्ट्रीय पदक प्रदान किया जा चुका है। दूसरे पुत्र अरूण कुमार ने बीकॉम.एवं एमबीए किया और भाग्य से इसे भी महासभा के वर्तमान अध्यक्ष श्री निर्मलकुमार सेठी की सुपत्री वधू के रूप में प्राप्त हुई है। आपकी एक पुत्री संगीता अभी अध्ययन कर रही है। विशेष : श्री चैनरूप जी का पूरा जीवन ही सामाजिक जीवन है । महासभा के वे कार्याध्यक्ष हैं। इसलिये देश की सम्पूर्ण समाज से मिलने का उनको अवसर मिलता रहता है। उनकी कार्यशैली भी सबको आश्चर्य में डालने वाली है । करो या मरो में विश्वास रखने वाले हैं तथा किसी भी समस्या पर शीघ्र ही निर्णय लेते हैं। समस्या को लटकाना उनकी आदत में सम्मिलित नहीं धार्मिक परिवारों से जुड़े होने के कारण आपका जीवन भी धार्मिक जीवन बनता जा रहा है । सोनागिरि सिद्ध क्षेत्र पर आपने नंग अनंग कुमार की प्रतिमा विराजमान की है । इसके अतिरक्त आपने शिखरजी के समवशरण में,शान्ति वीर नगर श्री महावीर जी में,हुम्मच पद्मावती तीर्थ में एवं डीमापुर के मन्दिर में अपनी ओर से एक-एक प्रतिमा विराजमान करने का पवित्र कार्य किया है।
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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