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समाज का इतिहास/23
दूसरे दशक में अर्थात् 1961 से 70 तक श्रमण परम्परा में एक नये सन्त का प्रादुर्भाव हुआ और वह है मुनि श्री विद्यानन्द जी महाराज । मुनि श्री ने राजस्थान की राजधानी जयपुर से अपनी तेजस्विता का जिस ढंग से परिचय दिया उसकी गूज सारे देश में फैल गई जिससे भगवान महावीर के श्रमणों की आध्यात्मिक शक्ति का सबको परिचय प्राप्त हुआ।
इन बीस वर्षों में जिन सन्तों, विद्वानों एवं नेताओं के निधन से गहरी क्षति हुई उनमें आचार्य कुंथुसागर जी (सन् 1945) आचार्य शान्ति सागर जी छाणी (1944), आचार्य शान्ति सागर जी (सन् 1955) आचार्य सूर्यसागर जी, आचार्य पायसागर जी (1956), आचार्य नेमिसागर जी (सन् 1957) एवं गणेशप्रसाद जी वर्णी (सन् 1961) के नाम विशेषतः उल्लेखनीय है। विद्वानों एवं श्रेष्ठियों में सर सेठं हुकमचन्द जी (1959), डॉ. कामता प्रसाद जी - अलीगंज (सन 1964), बाबू छोटेलाल जी जैन - कलकत्ता (1966), भंवरीलाल जी बाकलीवाल (1967), बाबू जुगल किशोर जी मुख्तार, ५. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ (1969) के नाम विशेषतः उल्लेखनीय है।
सन 1971 से 1980 तक का समाज : भगवान महावीर 2500वां परिनिर्वाण महोत्सव : सन् 1971 से 1980 तक का काल जैन समाज के लिये गौरवपूर्ण रहा। सन् 1971 से ही भगवान महावीर के 2500वाँ परिनिर्वाण महोत्सव का कार्यक्रम बनने लगा था। योजनाये बनती और बिगड़ती और फिर बनती। जैसे-जैसे परिनिर्वाण वर्ष आने लगा समाज में नया उत्साह बढ़ने लगा और अन्त में 2500वों परिनिर्वाण महोत्सव पूरे एक वर्ष (सन् 1974-75) तक मनाने हेतु अन्तर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय, राजकीय, सम्भागीय एवं स्थानीय स्तरों पर अनेक संगठन बने, नाना योजनाये बनी। इन सब गतिविधियों में समाज का सबसे अधिक सहयोग रहा। केन्द्र स्तर पर एवं राज्य स्तर पर श्री महावीर निर्वाण समितियों का गठन/इसके पश्चात् जिला स्तर, तहसील स्तर एवं ग्राम स्तर पर भी निर्वाण समितियों का गठन हुआ। महामहिम राष्ट्रपति जी केन्द्रीय समिति के संरक्षक खं प्रधानमंत्री अध्यक्ष बनी और इसी तरह प्रान्तों में भी राज्यपाल संरक्षक एवं मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय भगवान महावीर का 2500वौँ परिनिर्वाण महोत्सव समितियों बनाई गई। जिला कमेटियाँ भी बनी और उसमें जिलाध्यक्ष उसके अध्यक्ष बनाये गये । समाज ने अपने स्तर पर भी चारो समाजों के संयुक्त तत्त्वावधान में और फिर प्रत्येक समाज की और से भी निर्वाणोत्सव समितियाँ, केन्द्रीय, प्रान्तीय एवं जिला स्तर की समितियों बनाई गई । निर्वाण महोत्सव से जैन समाज में एकात्मक भावना में वृद्धि हुई और जैन कहलाने में वे गर्व का अनुभव करने लगे।
निर्वाणोत्सव वर्ष में सेमिनारों, सम्मेलनों, संगोष्ठियों का तांता लग गया। अजमेर, नजीबाबाद, सागर, नागपुर, गया (बिहार) में आयोजित सेमिनारे विशेष उल्लेखनीय रहीं। पत्र-पत्रिकाओं के विशेषांक निकाले गये। कितनी ही पुस्तकों का प्रकाशन हुआ। आकाशवाणी पर वार्ताये प्रसारित की गई। पुस्तक प्रकाशन में भारतीय ज्ञानपीठ ने विशेष योगदान दिया। राजस्थान सरकार की ओर से "राजस्थान में जैन साहित्य" पुस्तक प्रकाशित हुई। नगरों में महावीर उद्यान स्थापति किये गये तथा सड़कों का नाम महावीर