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लेखक की ओर से
जैन समाज की वृहद् इतिहास प्रस्तुत करते हुये मुझे अत्यधिक प्रसन्नता है। कुछ वर्षों पूर्व मैंने समाज का इतिहास लिखने का जो स्वप्न संजोया था वह आज साकार हो रहा है। तीन वर्ष पूर्व खण्डेलवाल जैन समाज का इतिहास लिखकर समाज को समर्पित किया था। उस इतिहास का सर्वत्र स्वागत हुआ तथा जातीय इतिहास लिखने की और समाज का ध्यान गया। कुछ इतिहास लिखे भी गये और कुछ लिखे जा रहे हैं। इससे इतिहास लिखने की प्रक्रिया को बल मिला है । इतिहास लेखन की दृष्टि से यह शुभ संकेत है।
प्रस्तुत इतिहास उस जैन समाज का है जो देश के प्रत्येक भाग में फैला हुआ हैं। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक जिसका अपना महत्व है। जो देश का मूल समाज है। सारे देश में फैले हुये ऐसे समाज के हजारों वर्षों का सामाजिक इतिहास लिखना बड़ा कठिन है। न जाने कितने महान समाज सेवी प्रत्येक शताब्दी में होते रहे जिन्होंने समाज के लिये अपना सर्वर लिदान कर दिया और शो क्षत विक्षत होने मे तचाया तथा धर्म की अवमानना नहीं होने दी। नगरों में ही नहीं गाँवों तक में ऐसे प्रभावशाली व्यक्ति हुने जिन्होंने जैनत्व का नाम गौरवान्वित किया। उन सबको इतिहास के पृष्टों में समेटना बड़ा कठिन है इसलिये 20 वीं शताब्दी के काल को ही इतिहास लेखन के लिये चयन किया गया। इस शताब्दी का इतिहास हमारे सामने से गुजरा है उसे हमने देखा है नहीं देखा है तो हमारे पूर्वजों से सुना है।
" जैन" नाम से तो जैन समाज एक हो है लेकिन इसमें दिगम्बर क्षेताम्बर के मुख्य विभाजन के अतिरिक्त दिगम्बर समाज भी जातियों एवं उपजातियों में, तेरह पंथ, बोस पंथ, आगए पंथ के साथ ही सोनगढ पंथ में बटा हुआ है। यही नहीं समाज में महासभा, परिषद्, महासमिति, विद्वत परिषद, शास्त्री परिषद, युवा परिषद की विचारधारायें विद्यमान हैं। आचार्य संघों एवं आर्यिका संघों में भी विभिन्न विचारधाराएं हैं। इसलिये समाज का इतिहास चाहे वह सौ पचास वर्ष का ही क्यों न हो क्रमबद्ध लिखना बड़ा कठिन हैं। फिर भी हमने सभी धाराओं को समाहित करते हुये इतिहास के पृष्ठ संजोने का प्रयास किया है।
समाज के इतिहास लेखन का मुख्य स्त्रोत जैन पत्र-पत्रिकाएं हैं। जैन गजट, जैन मित्र, जैन संदेश, वीर जैसे पत्र-पत्रिकाओं में समाज का इतिहास बिखरा पड़ा है लेकिन इन पत्र-पत्रिकाओं की व्यवस्थित फाइलें नहीं मिलती हैं। ऐसा कोई एक सेन्टर नहीं है जहाँ इन फाइलों को देखा जा सकता हो। हाँ जैन गजट की फाइलें तो मुझे महासभा कार्यालय कोटा में उपलब्ध हो सकी हैं जो इतिहास लेखन के लिये महत्वपूर्ण स्त्रोत सिद्ध हुई हैं। इसके अतिरिक्त जयपुर, इन्दौर, लश्कर, बंगलौर, कानपुर, कलकत्ता आदि नगरों की डाइरेक्ट्रियाँ भी इतिहास लेखन में सहायक सिद्ध हुई हैं। खण्डेलवाल, पल्लीवाल, खरौ आ जैसवाल आदि जातियों के इतिहास भी समाज के इतिहास लेखन का आवश्यक अंग बनी है।
जैन समाज के प्राचीन इतिहास लेखकों में श्री नाथूराम जी प्रेमी बम्बई ने साहित्यिक इतिहास के साथ-साथ समाज के इतिहास पर भी बहुत ध्यान दिया और स्वयं द्वारा संपादित कथानक की प्रस्तावना में सामाजिक इतिहास के कितने ही तथ्यों को उजागर किया । इतिहासवेत्ता एवं अखिल विश्व जैन मिशन के संचालक डॉ. कामताप्रसाद जी भी सामाजिक इतिहास के कितने ही पृष्ठों को खोलने में सहायक सिद्ध हुये। डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन तो इतिहासवेत्ता के नाम से ही प्रसिद्ध हैं। उन्होंने भारतीय इतिहास एक दृष्टि, प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं जैसी पुस्तकें लिखकर इतिहास के क्षेत्र में अपना अपूर्व योगदान दिया | डॉ. विलास ए. संगवे कोल्हापुर ने दक्षिण भारत के जैन समाज पर अच्छा प्रकाश डाला है। उक्त विद्वानों के अतिरिक्त और भी कुछ विद्वानों ने जैन समाज के सामाजिक इतिहास पर समय-समय पर प्रकाश डाला है।