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________________ जयपुर नगर का जैन समाज /229 श्री गणपतराय सरावगी (पांड्या) श्री गणपतराय जी सरावगी राय साहब श्री चांदमल जी पांड्या के ज्येष्ठ पुत्र है । आपका जन्म 31 जुलाई,सन् 1939 को हुआ था । मैट्रिक परीक्षा पास करके आपने व्यापार जगत में प्रवेश किया। आपका विवाह लाडनूं निवासी श्रीमान दीपचंन्द जी पहाड़िया की सुपुत्री नवरलदेवी के साथ संपन्न हुआ | श्री गणपतराय जी अपने पिता के समान गुणवान एवं कुशल सामाजिक कार्यकताओं में गिने जाते हैं । मुनियों के परमभक्त हैं तथा सभी धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में उत्साह से भाग लेते हैं । आप विदेश यात्रा कर चुके हैं। आपके एक पुत्र एवं दो पुत्रियां हैं । पुत्र श्री नरेन्द्रकुमार है जो बी काम. है। उनकी पत्नी का नाम शशिकान्ता है। उनके दो पुत्र है। पुत्रियों के नाम बेला और अनिता है। सभी का विवाह हो चुका है। श्री रतनलाल जी आपके छोटे पाई हैं। इनका विवाह लाडनूं निवासी श्री नथमल जी सेठी की सुपुत्री श्रीमती सरिता के साथ संपन्न हुआ। आपने जयपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से पोस्ट ग्रेज्युएशन प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया है ।श्री भागचन्द जी आपके दूसरे लघु भ्राता है । गण्यपतराय जी के पांच बहिने हैं जिन सबका समाज के प्रतिष्ठित घरानों में विवाह हो चुका है। पता: सी-106 सावित्री पथ, बापू नगर,जयपुर श्री गुलाबचन्द कासलीवाल (गुल्लोजी) आपका जन्म 16 फरवरी,1917 को जौहरी परिवार में स्व.श्री मणिराम जी कासलीवाल आगरे वाले के यहां जयपुर में हुआ। आपकी मां का नाम स्व.श्रीमती उमस्वदेवी है । आपने हाराज जयपुर के महाराजा स्कूल से मैट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् फर्म जैम पैलेस जबाहरात व पुरातत्व तस्वीरों व कालीन का संकलन निर्यात व विक्रय का कार्य किया। आपको मध्यकालीन कलात्मक वस्तुओं का विशेष ज्ञान है साथ-साथ पुस्तकों का संग्रह भी है । आपका विवाह गंगाबाई पाटनी से 7 मई,1937 में किशनगढ़ (मदनगंज) में हुआ। आपके पांच पुत्र ऋषभ, अशोक,अजित.अनिल व अलय तथा तीन पुत्रियां निर्मला, ब्रजबाला व गिरिबाला है। सभी विवाहित हैं। जनवरी 1981 में कार दुर्घटना में सिर में चोट आने के कारण विगत 10 वर्ष से अस्वस्थ वल रहे हैं। पता: मणि महल,ठोलिया सर्किल पांच बत्ती,जयपुर। डा. पं. गुलाबचन्द छाबड़ा जैनदर्शनाचार्य श्री दिगम्बर जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय के सन् 1969 से 1981 तक प्राचार्य पद पर रहे डा. गुलाबचन्द जी जैन दर्शनाचार्य का जयपुर के विद्वत समाज में विशिष्ट स्थान है । अपने आचार्यत्व काल में आप राजस्थान विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के पांच वर्ष तक कन्वीनर रहे । राजस्थान जैन साहित्य परिषद परीक्षालय बोर्ड के वर्षों तक मंत्री रहे। डा. गुलाबचन्द जी ने संस्कृत एवं हिन्दी दोनों भाषाओं में रचनायें निबद्ध की हैं। बाहुबलि निष्क्रमणम, पोहा दुखस्य कारणम् सत्यमेव जयते नानृतम, कीचक्र वर्णन, आदि
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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