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समाज का इतिहास/25
एवं सोच से समाज में प्रसन्नता का वातावरण पेदा हुआ। लेकिन इन दस वर्षों में समाज में कितनी ही कड़वी एवं मीठी घटनायें घटित हुई जिससे समाज कितने ही वर्गों में विभक्त हो गया।
आचार्यों का समाधिमरण
इन दस वर्षों में थोड़े-थोड़े अन्तराल से पांच आचार्यों का समाधिमरण हो गया। एक के पश्चात् एक आचायों की छत्र छाया उठती गई। आचार्य धर्मसागर जी महाराज का दिनांक 22-4-1987 को सीकर में समाधिमरण हुआ। सारे राष्ट्र ने उनके समाधिमरण पर दुखः प्रकट किया और एक महान तपस्वी एवं निर्ग्रन्थाचार्य को खोकर समाज में गहरी रिक्तता छा गई। इसके कुछ ही समय पश्चात् आवार्य देशभूषण जी महाराज ने कोथली (महाराष्ट्र) में समाधिमरण ले लिया। आचार्य देशभूषण जी समाज में वयोवृद्ध आचार्य थे और उन्होंने जयपुर में चूलगिरी एवं दक्षिण में कोथली जैसे तीथों की स्थापना की थी। कुंभोज बाहुबली तीर्थ प्रणेता आचार्य समन्तभद्र जी महाराज का भी इन्हीं दस वर्षों में निधन हो गया। इसके पूर्व आचार्य कल्प श्रुतसागर जी महाराज का लूणबा में 5 मई सन् 1988 को समाधिमरण हुआ था जिनके दर्शनार्थ लाखों की भीड़ उमड़ पड़ी थी और इस दशाब्दि के अन्त में दिनांक मई 1990 में साबला ग्राम में आचार्य अजितसागर जी का समाधिमरण हो गया। आचार्य अजितसागर जी को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुये एक वर्ष से कुछ अधिक समय ही हुआ था।
पंचकल्याणकों एवं अन्य विधानों का आयोजन
सन् 1981 से 90 तक देश में पंचकल्याणकों की धूम रही। देश में चारों ओर पंचकल्याणको, इन्द ध्वज विधानों, कल्पद्रुम विधानों एवं चौसठ ऋद्धि विधानों का आयोजन होता रहा। इन दस वर्षों में देश के विभिन्न भागों में 100 से भी अधिक पंचकल्याणक समारोह एवं गजरथ समारोह आयोजित हुये होंगे। जिनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश एवं देहली में सबसे अधिक पंचकल्याणक समारोह आयोजित हुये। अकेली देहली राजधानी में एक ही वर्ष में एक से अधिक पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह आयोजित होना हमारी धार्मिक जागृति के शुभ लक्षण है। पूर्वान्चल प्रदेश नलबाड़ी एवं डीमापुर में भी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह संपन्न हुये। बड़े-बड़े नगरों के उपनगरों में नये-नये जिनालयों का निर्माण हुआ। इस दिशा में देहली एवं जयपुर का नाम विशेषतः उल्लेखनीय है।
पंचकल्याणक महोत्सव आयोजनों के पश्चात् इन्द्रध्वज विधान, कल्पदुम विधानों की ओर समाज का विशेष आकर्षण रहा। कभी-कभी ये विधान पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सवों से भी अधिक आकर्षक बनते देखे गये हैं। इन्द्रध्वज विधान एवं कल्पद्म विधानों की रचना करने का श्रेय गणिनी आर्यिका ज्ञानमती माताजी को है। उनके द्वारा निबद्ध ये विधान समाज में बहुत आकर्षक बन गये है । इन विधानों के आयोजनों में साधुओं की प्रेरणा विशेष फलवती होती है। स्व. क्षुल्लक सिद्धसागर जी महाराज (लाडने वाले) जहां कहीं भी विहार करते इन विधानों के आयोजन की प्रेरणा देते रहते थे। उन्होंने सीकर एवं भागलपुर में विशाल स्तर पर इन्द्रध्वज विधान संपन्न कराये थे। कल्पदुम विधान का विशाल आयोजन भिण्डर में श्री निर्मलकुमार जी सेठी द्वारा दिनांक 8-4-1988 से 19-4-88 तक विशाल