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________________ समाज का इतिहास / 17 8. बारहवाँ अधिवेशन रेनवाल (राज.) : सेठ बिरधीचन्द जी सेठी, सुजानगढ़ । सेठ मूलचन्द जी बड़जात्या, लाडनूं । 9. तेरहवाँ अधिवेशन सम्मेद शिखर : यह अधिवेशन आचार्य श्री शान्ति सागर जी महाराज के सानिध्य में सम्पन्न हुआ था । 10. चौदहवाँ अधिवेशन नावाँ सेठ हीरालाल जी पाटनी । इसके पश्चात् सन् 1952 तक खण्डेलवाल महासभा के 22 अधिवेशन और सम्पन्न हुये । खण्डेलवाल जैन हितेच्छु पत्र का प्रकाशन वीर निर्वाण से. 2447 में शुरू हुआ। इसके सम्पादक तथा प्रकाशक पंडित पन्नालाल जी सोनी थे तथा सूरत से प्रकाशित होता था। चतुर्थ वर्ष से पत्र के सम्पादक पंडित पन्नालाल जी बाकलीवाल उनके बाद मोहरीलाल जी बोहरा, उनके बाद गुलाबचन्द जी पाटनी रहे। वीर निर्वाण सं. 2455 से पत्र के सम्पादक पं. इन्द्रलाल जी शास्त्री, जयपुर हुये । - महासभा के दो भागों में विभक्त हो जाने के बाद यह पत्र भी दो भागों में विभक्त हो गया तथा दोनों एक ही नाम से दो जगह से प्रकाशित होने लगे। मदनगंज से निकलने वाले हितेच्छु के सम्पादक - नेमिचन्द जी बाकलीवाल और इन्दौर से निकलने वाले हितेच्छु के सम्पादक पं. नाथूलाल जी शास्त्री रहे। बाद में प्रकाशन दोनों जगहों से बन्द हो गया । जैन खण्डेलवाल महासभा के अधिवेशनों में यद्यपि समाज सुधारकों में एवं स्थिति पालकों में कभी-कभी नोक-झोंक होती रहती थी लेकिन उससे महासभा के अस्तित्त्व पर कोई आँच नहीं आयी। लेकिन जब से मुनि श्री चन्द्रसागर जी महाराज ने लोहड साजनों के विरुद्ध अपने वक्तव्य दिये तथा उनसे रोटी-बेटी व्यवहार बन्द करने का आन्दोलन चलाया तब समाज एकदम दो भागों में विभक्त हो गया। लोहड साजनों का पक्ष लेने वालों में सर सेठ हुकमचन्द जी इन्दौर, सेठ तोलाराम जी गजराज जी गंगवाल, पं. चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ जयपुर, सेठ बालचन्द जी सेठी झालरापाटन के नाम उल्लेखनीय थे, दूसरी ओर सेठ गंभीरमल जी पाण्ड्या कलकत्ता, सेठ हीरालाल जी पाटनी, पं. इन्द्रलाल जी शास्त्री ने मुनि श्री चन्द्रसागर जी महाराज का पक्ष लिया। लूणियावास महासभा के अधिवेशन में समाज में जमकर लड़ाई हुई और यह झगड़ा इतना बढ़ा कि उसने अन्त में महासभा को ही समाप्त कर दिया। लोहड साजन आन्दोलन भी अपनी मौत मर गया और फिर लोहड साजन नाम का कोई समाज ही नहीं रहा। महासभा भी समाप्त हो गई। लेकिन इससे जातीय सभाओं के माध्यम से लागों में सामाजिक सेवा करने की भावना को बड़ी ठेस लगी ।
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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