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________________ 2021 जैन समाज का वृहद इतिहास श्री धन्नालाल जी कासलीवाल ___ मुंशी पत्रालाल जी कासलीवाल का जन्म संवत् 1900 कार्तिक सुदी 13 को हुआ। उन्होंने अरबी, फारसी,उर्दू, हिन्दी की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की तथा अंग्रेजी की शिक्षा एक सरकारी हाई स्कूल देहली में प्राप्त की। जयपुर महाराजा रामसिंह जी के वे विश्वस्त व्यक्ति थे इसलिये वे जयपुर नगर के फोजदार बनाये गये । फोजदार बनने के पश्चात् भी वे समाज में खूब आते-जाते थे । जयपुर के दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना में उन्होंने बहुत योग दिया । वे जब तक जीवित रहे जैन समाज की भलाई,बिकास एवं शिक्षा निवारण में लगे रहें : संवत् 1944 बैशाख कृष्णा 13 को मात्र 44 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हो गया। श्री भोलेलाल जी सेठी जयपुर जैन समाज के कर्मठ कार्यकर्ता थे। उन्होंने दि.जैन संस्कृत महाविद्यालय के संचालन में सबसे अधिक योगदान दिया तथा अंतिम समय तक उसके महामंत्री रहे। उनकी मृत्यु 6 मई 1910 को हुई। जैन गजट में उनको विद्वदवर, सज्जन शिरोमणि,सद् विद्यावर्धक,सौम्यमूर्ति, धर्मधुरन्धर एवं जैन महापाठशाला के प्राणमूर्ति जैसी उपाधियों से अलंकृत किया था। वे अपने समय के जयपुर जैन समाज के सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्ति थे। श्री अर्जुनलाल जी सेठी स्वतंत्रता सेनानियों में जयपुर नगर के श्री अर्जुनलाल सेठी का नाम सर्वोपरि आता है। अर्जुनलाल सेठी राजस्थान में स्वातंत्र्य आंदोलन के जहां पितामह थे, वहां बैन जागरण के अग्रदूत थे । सन् 1907 में जयपुर में उन्होंने बैन वर्धमान विद्यापीठ को स्थापना की जो देश में अपने ढंग की प्रथम राष्ट्रीय विद्यापीठ थी। सन् 1914 में राजद्रोह के अभियोग में बंदी करके मद्रास के बैलूर जेल में रखा गया जहां उन्होंने जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करके ही आहार करने के अपने प्रण को पूरा करने के लिये 70 दिन का अनशन किया । जैन धर्म के नित्य कर्म के प्रति ऐसी निष्ठा ने उन्हें भारत का मैकेस्विनी बना दिया। सन् 1920 में जेल से मुक्त होने पर वे बंबई जा रहे थे, उस समय मार्ग में पांचवा स्टेशन पर स्वयं लोकमान्य तिलक ने उनके स्वागत का अभूतपूर्व आयोजन किया। अपने गले का रेशमी दुपट्टा सेठी जी के गले में डालते हुये कहा कि आज सेठी जी जैसे महान देशभक्त व कठोर तपस्वी का स्वागत करते हुये महाराष्ट्र अपने को धन्य समझता है 15 जुलाई 1934 को महात्मा गांधी स्वयं उनसे भेंट करने उनके अजमेर स्थित निवास स्थान पर गये। एक सितम्बर,1934 को वे राजपूताना एवं मध्य भारत प्रान्तीय कांग्रेस के प्रान्तपति चुने गये । महात्मा गांधी ने 1925 के कानपुर अधिवेशन में सेठीजी के लिये कहा था आप धर्मशास्त्र के ज्ञान में मेरे गुरु तुल्य हैं। 1937 में सेठीजी ने अपने एक पत्र में लिखा था क्या अच्छा हो जो मैं केवल सर्वनपालक अनेकान्ती नाम से पुकारा जाऊं। तिलक महाराज की प्रेरणा से महाराष्ट्र के जो पांच विद्यार्थी सेठीजी की विद्यापीठ के स्नातक बने उनमें मोतीचन्द को फांसी हो गई तथा देवाचन्द जैन मुनि होकर आचार्य समन्तभद्र हुये जिन्होंने दक्षिण भारत में अनेक गुरुकुलों की स्थापना की । आचार्य समन्तभद्र का कहना था-सेठीजी जैसे व्यक्ति जिस धरती,समाज,देश व कुल में पैदा होते हैं,वे धन्य हो जाते हैं । सितम्बर 1880 में जयपुर में जवाहर जी सेठी के घर जन्में सेठी जी ने बी.ए. पास किया । कुछ माह चोमू ठिकाने में भी रहे उनका निधन 22 दिसम्बर,1941 को अजमेर में हो गया । सेठी जी अंग्रेजी, फारसी, संस्कृत, अरबी,हिन्दी और पाली के अच्छे विद्वान थे । जैन दर्शन के अधिकारी विद्वान थे तथा गीता के व्याख्याता थे।
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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