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________________ बिहार प्रदेश का जैन समाज /513 श्री अशोककुमार सेठी लाडनूं के श्री अशोककुमार सेठी युवा समाजसेवी हैं। 70 वर्षीय आपके पिताजी श्री पत्रालाल जी सेठी पंडित हैं तथा लाडनूं में शास्त्र प्रवचन करते हैं। आपकी माताजी श्रीमती सुगनीदेवी लाडनूं ही रहती हैं। सेठी जी का जन्म 21 जनवरी,1957 को हुआ । राजस्थान वि.विद्यालय से सन् 1979 में बी.कॉम.किया और फिर रांची में वनस्पति घी, तपाई खाधान काचसाप करने संग। सन् 1979 में आपका विवाह श्रीमती बीना से हुआ। श्रीमती बीना श्री बाबूलाल जी बगडा सुजानगढ की पुत्री हैं। आपको अब तक तीन पुत्रों अमित,रोहित एवं अंकित के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। आपके तीन बड़े भाई सर्व श्री सुधीरकुमार (44 वर्ष) बी.कॉम., एल.एल.बी. हैं तथा प्रबोध कुमार (40 वर्ष) बी कॉम. हैं। दोनों भाई जयपुर में व्यवसायरत हैं । सुधीर बाबू की पत्नी का नाम शांतिदेवी एवं सुबोधकुमार की पत्नी का नाम सुशीला देवी है। तीसरे बड़े भाई श्री स्वरूपचंद जी एम.कॉम. हैं । पप्पा उनकी पत्नी है। रांची में ही व्यवसायरत हैं। आपके छोटे भाई श्री राजेन्द्र सेठी रांची में व्यवसायरत हैं । उनकी पत्नी का नाम किरण है । आपके दो बहिनें है सरला एवं सरिता दोनों ही विवाहित श्री अशोक सेठी युवा व्यवसायी हैं । मिलनसार तथा विनीत स्वभाव के हैं। पता: दुकान संख्या 241, पंडारा कृषि बाजार प्रांगण, रांची (बिहार) श्री आनन्दीलाल चूड़ीवाल गदिया गोत्रीय श्री आनन्दीलाल जी चूड़ीवाल के नाम से प्रसिद्ध हैं । उनके पिताजी श्री झूमरमल जी गदिया सन् 1947 में बंगला देश गये। वहां से वे आसाम गये और सन् 1959 में रामगढ आकर रेडीमेड वस्त्रों का व्यवसाय करने लगे। इस समय आपकी आयु कोई 85 वर्ष की होगी । आपकी धर्मपत्नी श्रीमती सुन्दर देवी कोई 75 वर्ष की होगी। आपके पुत्र श्री आनन्दीलाल जी का जन्म संवत् 1987 में हुआ। सामान्य शिक्षा प्राप्त कर सके । 15 वर्ष की आयु में लाडनूं के तनसुखराय जी पाटनी की सुपुत्री इन्द्रमणि जी से आपका विवाह हो गया। जिनसे आपको 4 पुत्र एवं दो पुत्रियों के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ___ लाडनूं के व.चांदमल जी चूडीवाल आपके दादाजी थे। नागौर के साढे सोलह पंथ के मंदिर में आपके पिताजो ने दो मूर्तियाँ विराजमान की। आपने रामगढ मंदिर निर्माण में : योगदान दिया। आप वर्तमान में रामगढ जैन समाज के मंत्री हैं। आपकी माताजी एवं पिताजी - पूरी तरह मुनिभक्त हैं । साधुओं की सेवा करने की इच्छा बनी रहती है। आपकी धर्मपत्नी एक बार अष्टान्हिका व्रत के उपवास कर चुकी है। PR
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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