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________________ 470/ जैन समाज का वृहद् इतिहास मे 2013. TH) परिवार हैं तथा इतने ही श्रेताम्बर जैन परिवार भी रहते हैं। जिनमें स्थानकवासी अधिक है। मदनगंज में चार मंदिर एवं एक चैत्यालय तथा किशनगढ में भी चार मंदिर है। विगत पचास वर्षों में तीन पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें हो चुकी हैं। प्रथम पंचकल्याणक प्रतिष्ना 43 वर्ष पूर्व एवं शेष दोनों प्रतिष्ठाये सन् 1978 एवं 1979 में सम्पन्न हुई हैं। ओतम पंचकल्याणक प्रतिष्ठा आचार्य विद्यासागर जी महाराज एवं आचार्यकल्प श्रुतसागर जी पहाराज के सानिध्य में सम्पन्न हुई । यहां के पंडित महेन्द्रकुमार जी पाटनी काव्यतीर्थ मुनि दीक्षा लेकर मुनि श्री समतासागर जी कहलाये। बघेरा : बघेरा ग्राम दि. जैन बघेरवाल समाज का उद्गम स्थान हैं। यहां के शांतिनाथ दि. जैन मंदिर में अत्यधिक प्राचीन प्रतिमायें विराजमान हैं जो यहीं से खुदाई में उपलब्ध हुई थी । ग्राम में अग्रवाल जैनों के 22 घर एवं खण्डेलवाल जैनों के तीन परिवार हैं। यहां आदिनाथ दि. जैन अग्रवाल मंदिर और है। सावर :- अजमेर जिले में सावर प्राचीन कस्बा है । यहा खण्डेलवाल जैन समाज का जागा रहता था जो गावों में घूम-घूम कर परिवारों के इतिहास लिखने का कार्य करता था। यहां पर खण्डेलवाल जैन समाज के ।4 घर तथा अग्रवाल समाज के 55 परिवार है। जनसंख्या की दृष्टि से खण्डेलवालों के है। स्त्री पुरुष एव अग्रवाल जैनो के 525 स्त्री पुरुष है । यहां की पहाड़ी पर चरण चिन्ह हैं । जो हषांगरि अतिशय क्षेत्र कहलाता है। सरवाड़ :- अजमेर जिले का सरवाड प्राचीन अतिशय क्षेत्र है। इस संबंध में उपलब्ध प्रमाणों तथा शिलालेखों के आधार पर माग लाता है कि इसका निर्माण संभवतया वी या ]|| वीं शताब्दी में हुआ था । सम्पूर्ण मदिर केवल पत्थरों के खंभों पर निर्मित होने से इसकी स्थापत्य कला के आधार पर भी इसका निर्माण दशवी शताब्दी के पूर्व का मानना अनुमानित है। ऐतिहासिक तथ्यों के संदर्भ में भी यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण गौड राजाओं के समय हुआ होगा। आज भी भगवान का नाम गोडि. आदिनाश्य जी से अधिक प्रसिद्ध हैं । नवीं दसवी शताब्दी इस नगर के उत्कर्ष का समय ठहरता है । ऐसी भी मान्यता है कि किसी समय यहां 4012-31 दिगम्बर जैन परिवार निवास करते थे उस समय यह नगर वैभव के शिखर पर था - कई विशाल जिन मंदिर थे। इस मंदिर का जीर्णोद्धार संवत् 1984 में अजमेर के प्रसिद्ध सेट टीकमचन्द जी सोनी द्वारा कराया गया था । इस मंदिर में प्रतिष्ठित भगवान श्री आदिनाथ जी को भव्य एवं गनोज्ञ श्रेत पदमासन प्रतिमा जी चतुर्थकालीन है। प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार गुलाम वशीय शासक इल्तुतमिश ने भी मंदिर ध्वस्त करने की कलुषित भावना से आक्रमण किया किन्तु उसे सफलता नहीं मिली और भगवान के समक्ष नतमस्तक होना एड़ा। बादशाह को करबद्ध मूर्ति आज भी मंदिर में खड़ी है।
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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