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________________ समाज का इतिहास/29 तीर्थ बंदना रथ प्रवर्तन ___ भारतवर्षीय दि. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी की ओर से सन् 1987 के प्रारंम्भ में तीर्थ वंदना रथ का प्रवर्तन किया गया। इस रथ का प्रवर्तन इन्दौर में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने किया। तीर्थ रथ प्रवर्तन का उद्देश्य तीर्थ क्षेत्र कमेटी को आर्थिक सहायना जुटाने के अतिरिक्त देश में अहिंसा की भावना को बढ़ावा देना रहा। सर्वप्रथम तीर्थ रध प्रवर्तन मध्यप्रदेश में उसके पश्चात् दिल्ली, हरियाणा एवं राजस्थान में हुआ। तीर्थ वंदना रथ को दि. जैन महासमिति, . दि. और परिषद जैसी संस्थाओं का पूर्ण समर्थन प्राप्त था । उस योजना से दिगम्बर तीर्थ कमेटी को अच्छी आय हुई। जिसका उपयोग तीर्थ क्षेत्रों के विकास में होने लगा है। आचार्य कुन्दकुन्द द्वि-सहस्राब्दि समारोह __ आचार्य कुन्दकुन्द श्रमण संस्कृति के जगमगाते नक्षत्र है। जैनाचार्य परम्परा में आचार्य कुन्दकुन्द को प्रथम स्थान दिया गया है। सन 1988 में उनके समाधिमरण को दो हजार वर्ष पूरे हो गये इसलिये उनका द्वि-सहस्राब्दि समारोह मनाने के लिये व्यापक तैयारी की गई। भारतवर्षीय स्तर की सभी संस्थाओं द्वारा आचार्य कुन्दकुन्द सहस्राब्दि मनाने के लिये समाज से अपील की गई। आवार्य विद्यानन्द जी ने द्वि-सहस्राब्दि समारोह को दो वर्ष तक मनाने का सुझाव दिया। समारोह वर्ष में देश में अनेक संगोष्ठियां आयोजित की गई। भव्य झाकियों निकाली गई तथा कुन्दकुन्द साहित्य का प्रकाशन कराया गया। आचार्य कुन्दकुन्द पर कार्य करने वाले विद्वानों को सम्मानित किया गया । मुख्य समारोह वर्ष 1988 एवं 1989 में आयोजित किये गये। सबसे अधिक समारोह आचार्य विद्यानन्द जी, आचार्य विद्यासागर जी एवं उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज के सानिध्य में संपन्न हुये। उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज द्वारा खेकडा, मुजफ्फरनगर, बिनौली एवं सरधना में विशाल स्प से आचार्य कुन्दकुन्द पर संगोष्ठियों आयोजित की गई। 31 जनवरी, 1990 को देश में कुन्दकुन्द दिवस मनाया गया ! आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर आ. कुन्दकुन्द के जीवन पर वार्तायें प्रसारित की गई। अन्य विशिष्ट घटनायें __भारतीय ज्ञानपीठ, देहली एवं आचार्य शान्तिसागर जैन स्मारक ट्रस्ट, बम्बई के संयुक्त तत्वावधान में तथा आचार्य विमलसागर जी महाराज के सानिध्य मे दि. 7-8 सितम्बर, 82 को एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें देश के करीब 40 प्रमुख विद्वानों ने भाग लिया। अपने शोध पत्र पढ़े तथा उन पर विस्तृत चर्चा हुई। लेस्टर (लंदन) में स्थापित जैन सेन्टर में दिगम्बर-श्वेताम्बर स्थानकवासी एवं श्रीमद् रामचन्द्रसूरि के एक ही विशाल भवन में मंदिर उपाश्रय एवं स्थानकों का निर्माण हुआ। मंदिर की दिगम्बर विधि से पंचकल्याणक प्रतिष्ठा दिनांक 14 जुलाई. 88 से प्रारम्भ हुई। इस प्रतिष्ठा के प्रतिष्ठाचार्य
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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