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सात्विकता: आप मुनि चार्या में सदा लीन रहने से शुद्ध भोजन ही करते हैं।
धार्मिक प्रवृत्ति: आपने 1008 श्री ऋषभदेव की प्रतिमा जी की प्रतिष्ठा कराकर वेदी का निर्माण तथा चैत्यालय मन्दिर जी अजमेर में विराजमान की। श्री छोटे घड़े की नशियां जो में श्री धर्मसागर वृति आश्रम में एक कमरे का निर्माण कराया। अपनी जन्म स्थली ढाल ग्राम के जिन मन्दिर जी का भी जीर्णोद्धार कराया ।
राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /501
मुनिचर्या: आचार्य पू. शिवसागर जी, आचार्य महावीरकीर्ति जी, आचार्य धर्मसागर जी, आचार्य ज्ञानसागर जी, आचार्य देशभूषण जी आर्यिका ज्ञानमती माताजी, आर्यिका सुपार्श्वमती माताजी आदि संघों की वय्यावृत्ति व आहार व्यवस्था में सदैव अग्रणी रहे हैं।
यात्रा : भारत के प्रायः सभी नीर्थ क्षेत्र अतिशय क्षेत्रों की बन्दना कर चुके हैं। तीर्थराज सम्मेद शिखरजी की 18-20 दफा यात्रा कर चुके हैं।
विशेष रुचि : धर्मपत्नी सहित 50-55 वर्षों से निरन्तर रोजाना पूजा अभिषेक करते रहे हैं। मुनि चार्या, यात्रा, कबूतरों को दाना, औषधि वितरण की विशेष रुचि रहती है । आज भी कोई त्यागी आ जाता है तो उसके लिये भोजन आहार व्यवस्था करने में विलम्ब नहीं करते हैं।
पता बड़जात्या भवन,
सब्जीमंडी, आगरा गेट के सामने, अजमेर।
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