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________________ समाज का इतिहास/9 हरियाणा, पंजाब एवं कश्मीर प्रदेश : हरियाणा, पंजाब एवं कश्मीर तीनों ही प्रदेशों में कभी जैन समाज अच्छी संख्या में रहता था। सन् 1922-23 में लरकाना स्थित मोहनजोदड़ो स्थित टोले की खुदाई में प्राप्त मिट्टी की सीलों (मुद्राओ) पर एक तरफ खड़े आकार में भगवान ऋषभदेव की कायोत्सर्ग मुद्रा में मूर्ति बनी हुई है दूसरी तरफ बैल का चिन्ह बना हुआ है। हडप्पा को खुदाई में कुछ खण्डित मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई है। इन दोनों धड़ों से इस बात पर प्रकाश पड़ता है कि हडप्पा कालीन जैन तीर्थकर की मूर्तियों जैन धर्म में वर्णित कायोत्सर्ग मुद्रा की ही प्रतीक है। पंजाब प्रदेश में पहले हरियाणा प्रदेश भी सम्मिलित था। गांधार, जम्म, पूंछ, स्यालकोट, जालन्धर, कांगडा, सहारनपुर से अम्बाला, पानीपत, सोनीपत, करनाल, हिसार एवं कश्मीर का भाग सभी पंजाब प्रदेश में गिने जाते थे। पंजाब में जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने अपने द्वितीय पुत्र बाहुबलि को बहली गधार का राज्य दिया था। उनकी राजधानी तक्षशिला थी। पूरे पंजाब प्रदेश में 11वीं शताब्दी तक जैन समाज पर्याप्त संख्या में था। सिकन्दर बादशाह ने जब भारत के पंजाब प्रदेश पर आक्रमण किया तो उसे देश से लौटते समय बहुत से नग्न मुनि मिले थे एवं जैन मुनि पिहिताश्रव से तो उसका साक्षात्कार भी हुआ था। लेकिन 11वीं शताब्दी से लेकर 15वीं शताब्दी तक महमूद गजनवी से लेकर सिकन्दर लोदी तक अनेक मुसलमान बादशाहों ने भारत पर अनेक बार आक्रमण किये और मुगल बादशाह औरंगजेब के समय तक यहाँ के हिन्दू जैन एवं बौद्ध सम्प्रदायों के मन्दिरों को ध्वस्त किया जाता रहा एवं शास्त्र भण्डारों को जला दिया गया । यही कारण है कि 11वीं शताब्दी के बाद से ही पंजाब में क्रमशः जैन धर्म का हास होने लगा। सन् 1947 में पाकिस्तान बनने से पूर्व रावलपिण्डी छादनी, स्यालकोट छावनी, लाहौर छावनी, लाहौर नगर, फिरोजपुर, फिरोजपुर छावनी, अम्बाला, अम्बाला छावनी, मुलतान डेरा गाजीखान आदि नगरों में जैनो के अच्छी संख्या में घर थे तथा मन्दिर थे। इन जैनी में ओसवाल, खण्डेलवाल एवं अमवाल जातियों प्रमुख थी। पंजाब प्रदेश में भट्टारक जिनचन्द्र, प्रभाचन्द्र एवं शुभचन्द्र ने विहार किया था और अहिंसा धर्म का प्रचार किया था। संवत् 1723 में लाहौर में खड्गसेन कवि ने त्रिलोक दर्पण कथा की रचना की थी। लाभपुर (लाहौर ) में जिन मन्दिर था। वहीं बैठकर धार्मिक चर्चा किया करते थे। सन् 1981 की जनगणना के अनुसार इन प्रदेशों में जैनों की संख्या निम्न प्रकार थी : पंजाब 27,049 हरियाणा 35,482 चंडीगढ़ 1,889 जम्मू-कश्मीर 1,576 इस प्रकार देश के उत्तर से दक्षिण तक तथा पूर्व से पश्चिम तक जैन समाज प्रागऐतिहासिक काल से यहाँ का प्रमुख समाज रहा है। वह सदैव अहिंसक समाज रहा इसलिये शान्तिप्रिय भी बना रहा। सम्राट चन्द्रगुप्त, सघाट सम्प्रति, वारवेल, राष्ट्रकुट, अमोघवर्ष, कुमारपाल जैसे शक्तिशाली शासक जैन धर्मानुयायी थे। अहिंसाप्रिय थे लेकिन राष्ट्र की रक्षा के लिये उन्होंने युद्धों से कभी मुख नहीं मोड़ा और देश की रक्षा में जुटे रहे। 1. मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक में, सम्पादक : डॉ. कासलीवाल।
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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