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194/ जैन समाज का वृहद् इतिहास
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जयपुर जिले की बस्सी, चाकसू, गोविन्दगढ, दौसा, आमेर, सांगानेर तथा जमवारामगढ की तहसीलें, अलवर जिले की थानागाजी तहसील, टौंक जिले की मालपुरा एवं उनियारा तहसीलें, सीकर जिले की श्रीमाधोपुर तहसील एवं जयपुर की फुलेरा, फागी, बैराठ और कोटपूतली तहसीलों के भाग सम्मिलित हैं ।
संवत् 1781 में जैन कवि खुशालचंद ने हिण्डौन तहसील में स्थित अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी को भी ढूंढाड़ प्रदेश में सम्मिलित किया था।
देश ढूंढाहड सुहावनों महावीर संस्थान । जहां बैठ लेखन कियो, धर्मध्यान चित ठान ।
इसी तरह संवत् 1871 में सकलकीर्ति के रामपुराण की पाण्डुलिपि दीर्धपुर (डीगामें संपन्न हुई थी। लिपिकार ने उसे "ढूंढाहर देश दीर्घपुर लिपिकृतं" ढूंढाहड प्रदेश का ही एक भाग माना है।
___ भाषा की दृष्टि से ढूंढाडी भाषा को राजस्थानी भाषा के रूप में स्वीकार किया गया है । इसी ढूंढारी भाषा की उपभाषायें अथवा उप बोलियों में तोरावाटी,राजावाटी, काठेडी, चौरासी,शाहपुरी, जयपुरी, अजमेरी, किशनगढी तथा हाडौती को गिनाया है । लेकिन अजमेरी, किशनगढी, हाडौती को ढूंढाड़ी भाषा का अंगनहीं माना जा सकता। इसलिए तोरावाटी, राजावाटी, काठेडी. चौरासी, शाहपुरी एवं जयपुर बोलियों के भाग को ही हम ढूंढारी भाषा का प्रदेश अथवा ढूंढाड़ प्रदेश कह सकते हैं।
यद्यपि ढूंढाड प्रदेश की सीमाये कभी कभी राजस्थान के एक बड़े भू-भाग को स्पर्श करने लगी थी और ढूंढार में डीग, टोडारायसिंह, रणथम्भौर, टौंक नैणवा, सीकर, कोटपूतली, बैराट, नीलकंठ महादेव जैसे ग्राम एवं नगर उसकी सीमा में आने लगे थे लेकिन ढूंढाड प्रदेश की वास्तविक सीमाये पहिले आमेर एवं फिर जयपुर राज्य की सीमाओं के साथ-साथ चलती रही । और ढूंढारी बोली का भी उसी तरह प्रचार प्रसार होता रहा । आमेर एवं जयपुर यद्यपि ढूंढारी का केन्द्र स्थान रहे और बाहर से आने वाले भाषा - भाषी भी धीरे-धीरे ढूंढारी भाषा के ही भाषी बन गये । ढूंढाड प्रदेश की जयपुर जिले की जयपुर, बस्सी, चाकसू, आमेर, दौसा, सांगानेर तहसीलें, अलवर जिले की बैराठ एवं थानागाजी तहसील, टौंक जिले की मालपुरा, निवाई एवं उनियारा की तहसीलें, सीकर जिले की श्री माधोपुर तहसील पूर्ण रूप से ढूंढाड प्रदेश में गिनी जानी चाहिये । इन तहसीलों के अतिरिक्त सवाई माधोपुर जिले की सवाई माधोपुर, बौंली, खंडार एवं हिण्डौन तहसील, जयपुर की फुलेरा तहसील, अजमेर की किशनगढ का कुछ अंश भी ढूंढाइ प्रदेश का ही एक अंग माना जाने चाहिये।
प्रस्तुत इतिहास में हमने उक्त आधार पर ढूंढाड प्रदेश के जैन समाज का परिचय दिया है ।