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________________ राजस्थान प्रदेश का जैन समाज /193 ढूंढाड़ प्रदेश ढूंढाड़ प्रदेश राजस्थान का अतीव प्राचीन प्रदेश है। स्वयं ढूंढाड शब्द ही उजड़ी हुई बस्ती का द्योतक है । इसलिये यह प्रदेश कभी सुरम्य एवं जन संकुल रहा होगा लेकिन कालान्तर में कुछ अज्ञात कारणों से वह उजड़ हो गया और "ढूंढाड" इस नाम से जाना जाने लगा। ढूंढाड़ और ढूंढाइड एक ही शब्द है। अधिकांश कवियों ने अपनी कृतियों एवं ग्रंथ प्रशस्तियों में ढूंढाड शब्द का ही प्रयोग किया है। ढूंढाड़ प्रदेश की सीमा ढूंढाड़ प्रदेश की सीमाओं के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। इस प्रदेश की सीमाओं में सदा ही परिवर्तन होता रहा है । इसीलिये गत एक हजार वर्षों से ढूंढाड़ प्रदेश का राजस्थान के मानचित्र में कभी एक स्वरूप नहीं रहा। इस प्रदेश की सीमाओं के संबंध में भाटों की बहियों में निम्न दोहा मिलता है : उत्तर टोंक टोड़ा से, सैंथल से आथूणी धरा । इसड़ा मिनख बसें ढूंढाड में, परबतसर से उरा उरा । अर्थात् टाँक और टोडारायसिंह से उत्तर दिशा की ओर दौसा जिले के सैथल ग्राम से पश्चिम की ओर तथा मारवाड़ के परबतसर ग्राम से इस ओर का प्रदेश ढूंढाड प्रदेश कहलाता है जिसमें बहुत से मनुष्य रहते हैं । इसी तरह सीमाओं संबंधी एक और दोहा मिलता है : सोता साबी काटली चंबल और बनास । इन सब नदियन कै बीच में, बसें देश ढूंढाड़ 1 इस दोहे में नदियों को आधार मानकर ढूंढाड प्रदेश की सीमाओं का वर्णन किया गया है । दृढड़ प्रदेश की सीमा निर्धारित करने वाली नदियों में सोत, साबी, काटली, चंबल और बनास के नाम प्रमुख हैं। ढूंढार प्रदेश की सीमायें एक विद्वान के अनुसार निम्न प्रकार अंकित की जा सकती हैं ।
SR No.090204
Book TitleJain Samaj ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year
Total Pages699
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Culture
File Size16 MB
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