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576/ जैन समाज का वृहद् इतिहास
वैसे तो सर सेठ सभी को संकट के समय में सहयोग देते थे लेकिन जैन धर्म एवं समाज पर जब कभी संकट आया तो उसके निराकरणार्थ वेतन मन से उसमें जट गये। आचार्य शांतिसागर महाराज के वे पक्के भक्त थे। सन 1999 में आचार्य श्री संघ के साथ दिल्ली पधारे। तब सरकार की ओर से कुछ पाबन्दियां लगा दी गई थी। आपके सभापतित्व में देहली में विराट सम्मेलन हुआ और सरकार की कार्यवाही का विरोध किया गया। बम्बई सरकार ने हरिजन मंदिर प्रवेश को जब जैन मंदिरों पर भी जबरन लागू किया तब सन् 1948 में आचार्य शांति सागरजी महाराज ने अनजल का त्यागकर जो आत्मसाधना को उसका सेठ जी के जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ा । उन्होंने भी अन्नाहार का त्याग करके अपनी धार्मिक निष्ठा एवं गुरुभक्ति का परिचय दिया।
श्री सम्मेदशिखर जी पर संवत् 1956 में अंग्रेजों की बस्ती बसाने का सर सेठ ने समस्त जैन समाज के साथ उसका डट कर मुकाबला किया और अन्त में आपके भर्यकर विरोध के कारण अंग्रेजों को अपनी योजना वापिस लेनी पड़ी। सरसेठ साहब ने श्री मक्सी क्षेत्र,तारंगा क्षेत्र, ऋषभदेव जी क्षेत्र के दिगम्बर श्वेताम्बर के विवादों को अपना विशेष प्रयास करके निबटाया । श्री बाहूबली स्वामी के महामस्तकाभिषेक पर संवत् 1982 में एवं संवत् 1996 में सपरिवार सम्मिलित हुये और क्षेत्र को आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ करके अपनी दानशीलता का परिचय दिया। अखिल भारतीय दि.जैन महासभा का आपका 50 वर्षों से भी अधिक समय तक सम्पर्क रहा। सर्वप्रथम सन् 1919 में
महासभा का सामेटागिता में आयोजित अधिवेशन का आपने सभापतित्व किया और वहां आप प्रधानमंत्री नियुक्त किये गये जिस पर वे दो वर्ष तक बने रहे । फिर मथुरा में सन् 1924 में 19वें वार्षिक सभापति चुने गये । सात वर्ष तक स्थाई सभापति रहे । बनेडिया एवं देवगढ़ में वे फिर सभापति चुने गये। इस प्रकार महासभा का और सरसेठ साहब का संबंध अंतिम समय तक घनिष्ठ बना रहा।
सरसेठ हुकमचंद जी का समस्त जीवन ही समाज एवं देश सेवा में समर्पित रहा। समाज ने भी उनको सम्राट की तरह सम्मान दिया। उनका एक युग था जिसे हम सरसेठ हुकमचन्द युग के नाम से पुकार सकते हैं। आपके प्रथम सुपुत्र रामबहादुर राजकुमारसिंहजी
का भी स्वर्गवास हो चुका है । वे भी समाज में विशेष समादृत थे ।वे समाज के सभी भारतवर्षीय स्तर की संस्थाओं के शीर्षस्थ नेता माने जाते थे।
मागदशक
श्री मिश्रीलाल जी पाटनी
श्री पाटनी जी मध्यप्रदेश के सामाजिक क्षेत्र में अत्यधिक सम्मानित व्यक्ति माने जाते रहे। उनका जन्म अलवर (राज) में पोप बदी पंचमी शनिवार सन 1914 को हआ। लेकिन कर ही वर्षों के पचात् वे लश्कर वालियर आ गये और चौथमल मानमल पाटनी के यहाँ दत्तक पुत्र के रूप में सम्मानित हुये तथा दो गांवों के जागीरदार एवं नायब तहसीलदार के अधिकारों को प्राप्त किया।