Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पीयूषवर्षिणो-टीका व १७ प्रवृत्तिव्यावृतस्य कूणिकराजसमीपगमनम्
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मूलम् - तर ण से पवित्तिवाउए इमीसे कहाए लट्टे समाणे हट्ट तुह-चित्त-माणंढिए पीड़मणे परम सोमणस्सिए
मुपागत
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टीका- 'तए ण' इयादि तत सल-यदा भगवान् - चम्पानगराममीपग्राम - तदनन्तर तपश्चात, 'से पवित्तिवाउए' स प्रवृत्तित्र्यापृत = स पूर्वोक्त - भगनदवात्ताऽऽनयन नियुक्त ' इमीसे कहाए' अस्था कथाया 'लट्ठे समाणे ' लम्पार्थ सन् - जातभगवानवृत्तात सन्, ' हट्ट तुटु चित्त माणदिए ' हृष्ट-तुष्ट - चित्ता--नन्दित - दृष्टतुष्ट = अतितुष्टम्, यहा हर-हर्पितम् तुष्टम् प्राप्तसन्तोपतादृश चित्त यस्य स हृष्टतुष्टचित्त, अत एव आनन्दित = आनन्द प्राप्त सजातमानसोल्लास इत्यर्थ । सुने 'चित्तमाणदिए ' इत्यन मकार प्राकृतत्वात् । “ पीइमणे' प्रीतिमना --प्रति-तृप्तिर्मनसि यस्य स प्रीतिमना तृप्तमानस । 'परमसोमणस्सिए' परमसौमनस्थित - परमम् - उत्कृष्ट च तत् सौमनस्य प्रसन्नचित्तता चेति परमसौमनस्य तदस्य सजात परमसौमनस्थित
परमानुरागपूर्णमनस्क
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तण से पवित्तिवाउए ' इत्यादि --
( तए ण) जन भगवान् चपानगरी के समापन
ग्राम मे पधारे तन
( से पवित्वाउए ) भगवान का वाता के लाने के लिये नियुक्त किया हुआ वह पुरुष ( इमीसे कहाए ) इस समाचार को ( लद्धडे समाणे ) जानकर कि भगवान् चपानगरी के समीपवर्ती ग्राम में आकर विराजमान हो चुके है, ( हट्ट -टुचित्त - माणदिए ) इससे उसके चित्त म अत्यन्त हर्प और सन्तोप हुआ । अत वह अत्यन्त आनंदित हुआ, ( पीइमणे ) मन मे प्रेम छा गया, (परमसोमणस्सिए) अयत अनुराग से उसका मन भर गया ( हरिस - वस - विसप्पमाण - हियए) अपार
6 तए ण से पवित्तिवाउए' इत्यादि
(तए ण) न्यारे लगवान थ धानगरीना सभीपवर्ती गाभभा पधार्या त्यारे ( से पविन्तिनाउए ) भगवाननी वार्ता- समाचार सह वा भाटे निभाया ते ३षे ( इमीसे कहाए ) मे सभाथारने (लट्टे समाणे ) भएया ने लगवान ચ પાનગીના મસીપવી ગામમા આવીને બિરાજમાન થઈ ચૂકયા છે, ( हट्ट तुट्ठ चित्त माणदिए ) भाथी तेना भनभा अत्यंत હું અને સાષ थयो भने तेथी ते महु मानह पाभ्यो, ( पीइमणे ) भनभा प्रेम गयो, (परम सोमणस्सिए) अत्यत अनुरागथी तेनु મન
छवाई ભરાઈ ગયુ