Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
पोपवषिणो टोका व ४८ कूणिकस्य वस्त्रादि धारणम्
३९९
किं
1
बहुणा । कव्यरुक्खए चेव अलंकिय-विभूसिए णरवर्ड सकोरटमलदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेण उभओ चउ चामर वाल-वीइ
स तथा य वलय धृत्वा विजयते तादृशवल्यधारक इत्यर्थ । यदा यदि कचिदस्ति वीरसौमा विजय मम हस्ताद्वहिष्कगेवेत वलयमिति स्पर्धयन य कटक हस्ते परिधत्ते स वारवन्य इयुच्यते । 'किं बहुणा' किम्बहुना - किमधिकेन वर्णनेन ? ' कप्परुक्खए चैत्र अलकिय विभूसिए णरवई' कल्पक्ष इवाटतनिभृषितो नरपति - अलङ्कृतो मणिरत्नाऽऽभूषणै, विभूषितश्च महार्हपरिधानायादिनिचिननसने नरपति कूणिको राजा मायाकल्पवृक्ष इव शोभते इति भान । म नरपति ' सकोरट - मल्ल-दामेण ' सफोरण्टमान्य- दाम्ना - कोरण्टस्य मान्यानि = कुसुमानि तेपा नामानि = मालास्तै सहितेन ' उत्तेण परिज्माण' उत्रेण त्रियमाणेन शोभमान, 'उभओ चउ-चामर - बाल-वीइयगे ' उमयत चतुचामरपालनाजिताङ्ग, 'मंगल-जयसद कया-लोए' मद्गल- जयगन्द कृताऽऽलोक - मनात की घोषणा करता है कि जो भी कोई चीर हो वह मेरे हाथ से इस वलय को
- छुडावे, इस प्रकार का स्पधा से नीरा द्वारा जो वलय धारण किया जाता है वह भी नागलय कहा गया है। (किं पहुणा) अधिक क्या कहा जाय ' (अलकिय- त्रिभूसिए) मणिरत्नादिक के आभूषणों से अलकृत एहुमूल्य अनक प्रकार के सुदर मुदर वस्त्रों से निभूषित (णरवई) वे राजा (रूप्परुक्खए चैत्र) कल्पवृक्ष की तरह गोभित होने लग । उनके ऊपर (सफोरट-मल-दामेण छत्तेण धरिज्जमाणेण) कोस्ट के पुष्पा की मालाओं से युक्त उत्र घरा हुआ था, न उनके ऊपर (उभओ चउ-चामर वाल-वीडयगे) दोनों ओर से चार चामर ढो जा रहे थे, (मगल - जयसद-कया लोए) तथा उनके देखते ही मनुष्या न 'मगल हो, जय
કરે છે તે એ વાતની ઘેાષણા કરે છે કે જે ઈ પણ વીર હોય તે મારી પાનેથી હાથમાથી આ વલયને ખેચીને દેઢાવી જાય આ પ્રકારની સ્પર્ધાથી વીરા દ્વારા જે વલય ધારણ કરવામા આવે છે તેને વીરવલય ठहेवामा आवे छे (किं बहुणा ) पधारे शु न्हेवु होय । (अलकिय-विभूसिए) भणिरत्नोयुक्त मालूषयोथी भसङ्कृत तेमन महुमृस्य ( धा ङिमती ) याने अहारना सुदर वस्त्रोथी विभूषित ( णरवई ) ते शुभ ( कप्प खए चेव ) वृक्षनी पेठे शोलवा साज्या तेभना उधर ( सकोरट मल्ल दामेण छत्त्रेण धरिज्जमाणेण) दो२टना पुष्योनी भासा वडे युक्त छत्र धाग्यु ४रायेस हेतु तेभन तेमना ५२ (उभओ चउ-चामर चालवीइयगे) भन्ने मान्नुखे भणी या याभर ढोणा रह्या हता ( मगल - जयसद्द - क्या - लोए) तथा तेभने