Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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तावस्य वचन श्रुत्वा कुमारी मोचतु:---
मूलम्-
बत्तरा
नो इंदियग्गिंज्झ अमुत्तभावा, अमुत्तभावा त्रिये होई निचो । अज्झत्थंहेऊ नियंओऽस्सबधो, ससारहेउ व वैयति बंध ॥ १९ ॥ छाया - नो इन्द्रियग्रामः अमुर्त भागात अमूर्त मात्रादपि च भवति नित्यः । अध्यात्महेतुर्नियतोऽस्य वन्धः, ससार हेतु च वदन्ति बन्धम् ॥ १९ ॥ 'नो इदियगिज्झ ' इत्यादि
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हे तात ! यद् भवान् प्रत्यक्षतोऽनुपलभ्यमानत्वादात्मनोऽस्तित्वमेत्र खण्डयति, तदप्यवास्तविकमेव । यतः असौ आत्मा नो इन्द्रियाय चन्द्रियैः श्रोत्रादिभिः = सवेधो न भवति, अमूर्त्तभावात् अमुर्त्तस्वात्-रूपाद्यभावात् । अय भात्रः- यदीनास्ति" आत्मा नहीं है। इसलिये शशविषाण (ससलेका सींग ) तुल्य आत्माका जब स्वतंत्र कोई अस्तित्व नहीं है तो फिर उसकी मुक्तिके लिये धर्माचरण करना निरर्थक ही है ||१८||
इस प्रकार पुरोहित-पिता के वचनोंको सुनकर दोनों कुमारोंने क्या कहा- यह बात इस गाथा द्वारा प्रकट की जाती है
'नो इदि गिज्झ० ' इत्यादि
अन्वयार्थ - हे तात ! आपने जो अभी कहा है कि प्रत्यक्ष प्रमाण से आत्माका ग्रहण नही होता है अतः वह शशविषाण (सनलेका सींग) की तरह असत् है सो ऐसा कहना आपका ठीक नही है कारण कि वह प्रत्यक्ष के द्वारा जो ग्रहण नहीं होता है उसका कारण (अमुत्तभावा अमूर्त भावाद) उसका अमूर्त होना है अत वह ( नो इदियग्गिज्ज - इन्द्रियग्राह्य न ) किसी भी \ इन्द्रियका विषय नही है । अमूर्तका तात्पर्य है रूपादिक विशिष्टत्वका
अत्यथी लघुवामा भावे मेभ नहीं होवाथी “आत्मा नास्ती" आत्मा नथी आ भाटे સંસલાના શિંગડાની માફક આત્માનુ જ્યારે કોઈ સ્વતંત્ર અસ્તિત્વ જ નથી તા પછી તેની મુક્તિ માટે ધર્માચરણ કરવુ એ નિરર્થક જ છે ॥ ૧૮ ।
આ પ્રકારનાં પુરાહિત પિતાના વચનેને સાભળીને બન્ને કુમારીએ શું
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अधु-मेवात या गाथा द्वारा प्रगट पुवामा आवे छे - "नो इदिय गिज्झ" -४त्याह અન્વયા—હે તાત । આપે હુમા જ કહ્યુ કે, અપ્રત્યક્ષ પ્રમાણુથી આત્માનુ ગ્રહણું થતું નથી આથી તે સસલાના શિગડાની જેમ અસત્ છે તે આપનુ એ, કહેવુ ખરેખર નથી કારણુ કે, પ્રત્યક્ષમા ન જોઈ શકાય તેનુ "आर मे छे है, अमुत्तभावा-अमूर्त्तभावात् ते व्यदृश्य छे थे अर नो इदिय गिज्ज - इन्द्रियग्राह्य न अर्ध पशु अवयवस्य नथी भेटते है, तेनु अर्थ यु રૂપ નથી જેનામા અમૂર્તનુ તાત્પય એ છે કે, ૨૫ આદિ વિશિષ્ટત્વના