Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1069
________________ ८५४ पत्युचिन निशम्य नाह्मणी माह उत्तराध्ययनस् मूलम्- सुसमिया कामगुणा इमे 'ते, संपिंडिया अग्गरेसा पभूयाँ । भुजामु ती कामगुणे पंगाम, पंच्छागमिस्लीम पहाणैमग्ग ||३१|| छापा - सुभृता. कामगुणा इमे ते, सम्मिण्डिता अध्वरसा प्रभूताः । भुञ्जीमहि तान् कामगुणान् काम, पखाद् गमिष्यावः प्रधानमार्गम् ॥३१॥ टीका--' सुसमिया' इत्यादि- हे स्वामिन्! ते तर गृहे इमे प्रत्यक्ष दृश्यमानाः कामगुणाः पञ्चेन्द्रियसुखा पदार्थाः सहस्रसरस मिष्टान्नपुष्पचन्दननाटकगीतवाल वेणुवीणादयः सुभृता - सम्यक् संस्कृताः सन्ति, तथा सम्पिण्डिताः सम्यरु पुजीकृताः, तथाअय्यरसा = अम्य प्रधानो रसो येषु ते तथा, मधुरादिरसमया, अथवा अग्र्यः प्रधानः रसो येभ्यस्ते तथा - श्रृङ्गाररसजनका., उक्तच 'सुसभिया' इत्यादि । अन्वयार्थ - पतिके इस प्रकार वचन सुनकर ब्राह्मणीने कहास्वामिन्! ( ते-ते ) आपके घर मे (इमे इमे ) यह प्रत्यक्ष दृश्यमान (कामगुणा - कामगुणा. ) पचेन्द्रियसुखदपदार्थ- सद्वस्त्र, सरसमिष्टाभ, पुष्पचदन, नाटक, गीत, तालवेणु वीणादिक ये सब ( सुसभिया - सुसभृता.) खून २ भरे पडे हुए है तथा (सपिडिया - सपिण्डिताः ) ये थोडे बहुत होवे तो बात भी सही है या अलग २ स्थानोंमे भिन्न २ रूपमें रखे होवें सो बात नही है किन्तु ये सब एक ही जगह समुदाय रूपमें रखे हुए हैं (अग्गरसा-अय्यरसा.) ये नीरस भी नहीं हुए हैं । मधुरादि रस सपन्न है । अथवा श्रृंगार रसके ये सब उत्तेजक हैं । कहा भी है “gafuar "-veuls અન્વયા—પતિના આ પ્રકારના વચન સાભળીને બ્રાહ્મણીએ કહ્યુ, स्वामिन्! ते-ते आपना 'घरमा इमे इमे मा प्रत्यक्ष हेमाता कामगुणा - काम गुणा पयेन्द्रिय सुम पार्थ सारा वस्त्र, सरस भिष्टान, पुष्प थइन, नाट गीत, तास, वेलु वीहि मा सघणा सुसभिया - सुसभ्रता सुभ पूज चूम लर्या पडेस छे सपडिया-सपिण्डिता मे थोडा होय तो वात रोगर अथवा અલગ અલગ સ્થાનેમા ભિન્નભિન્ન રૂપમા રાખેલ છે એ વાત નથી પર તુ એ સઘળા येऊन स्थणे समुदायमा राजे हे अगरसा - अग्रयरसाः मे निरस पशु नथी બન્યા. મધુરાદિ રસસ પન્ન છે અથવા શ્રુંગારરસને ઉત્તેજાવાળા છે. કહ્યુ પશુ છે

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