Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1101
________________ ૯૮૨ राज्यमन ऽवयुध्य वरान् श्रेष्ठान् कामगुणान् = शब्दादिविषयान् त्यक्त्वा, 'इला' 'कामभोगे' इति पदद्वये मागुक्तेऽपि ' चिच्या' 'कामगुणे' इति पुनरभिधानं त्रिकरण नियोगत परित्याग सूचयितुम् । तथा यथाऽऽख्यातम् तीर्थ करगणधरादिमिर्येन प्रकारेण कथित तथैव घोरम्= कातर पुरुपैरत्यन्तदुश्वर तपः = अनशनादिकं प्रयुद्ध - स्वीकृत्य निर्विषयोपर्जितशब्दादिविपय कामभोगपरित्यागात्, अथवा विषयो देशस्तद्रहित, राष्ट्र परित्यागात् निरामिप = भोगामिपरर्जित विषयाभिष्वङ्ग परित्यागात्, निःस्नेही= स्नेहरहितौ स्वजनादिप्रेमपरित्यागात्, निष्परिग्रह वाझा 9 'चइत्ता' इत्यादि । अन्वयार्थ -- (चिउल-विपुलम् ) विशाल (रज्ज - राज्यम् ) राज्यवैभव तथा (दुच्चए कामभोए य-दुस्त्यजान् कामभोगान् च) दुस्स्यज-जो छोडना बहुत ही कठिन था ऐसे कामभोगोंका (चहत्ता - त्यक्त्वा) परित्याग करके पश्चात् (सम्म धम्म विणायित्ता- सम्यक् यथावस्थित-धर्म विज्ञाय ) यथावस्थित धर्म तचारित्ररूप धर्म के स्वरूपको अच्छी तरह विशेषरीतिसे समझकर (दुच्चए कामगुणे चहत्ता - दुस्त्यजान्- कामगुणान् त्यक्त्वा ) श्रेष्ठ शब्दादिकोंके विषयोंका निकरण नियोगसे त्याग करके (जहर, यथा ख्यातम् ) तीर्थंकरादिकांने जैसी विधिसे आराधन करना है उसी विधि अनुसार ( घोर - घोरम् ) कायरों द्वारा आचरित है सर्वथा अशक्य ऐसे (तव - तप.) अनुशन आदि तपों को (पगिज्झ-: स्वीकार करके (निब्बिसया - निर्विषयौ) कामभोगादिकोंसे रहित ३ अपने देशसे रहित तथा ( निरामिसा - निरामिपौ ) भोगरूप आणि रहित एव ( निन्नेहा-नि स्नेहौ ) स्वजनादिकके प्रेमबधनसे रहित हु " चइत्ता" धत्याहि 1 मन्वयार्थ-विउल-विपुलम् विशाण रज्ज-राज्यम् राज्य वैभव कामभोए य- दुस्त्यजान् कामभोगान् च हुस्त्यन्य नेने छोड्वु भूम उठ सेवा अभोगी वा त्यक्त्वा परित्याग उरीले पछीथी सम्म धम्म विणा यित्ता - सम्यक् - यथावस्थित - धर्म विज्ञाय यथावस्थित धर्म श्रुतथास्त्रि३य धर्मना स्वइथले सारी रीते सभकने दुच्चए कामगुणे चइता - दुस्त्यजान् कामगुणान त्यक्त्वा श्रेष्ठ शहाहि विषयोना त्रिरण त्रियोगथी त्याग उरीने जहाक्खायચથા વાતમ્, તિર્થં કરાદિકોએ જે વિધિથી આરાધના કરવાનું બતાવેલ છે એ विधि अनुसार घोरघोरम् आयरे मेने ४री शत्रुता नथी वा तब तप अनशन हि तयोनी परिज्झ-प्रगृह्य स्वीजर अरीने निव्विसया - निर्विषय अभ बागाहिस्थी रहित अथवा पोताना देशथी दूर भने निरामिसा-निरामिषौ लोग ३५ श्राभिषथी रडित तेन निन्नेहा-नि स्नेह वाहिना प्रेभय घनथी भाग

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