Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1103
________________ ૮૮ર - ऽवयुध्य वरान श्रेष्ठान् कामगुणान् शब्दादिविपयान् त्यक्त्वा, 'चहत्ता' 'कामभोगे' इति पदद्वये प्रामुक्तऽपि विचा' 'कामगुणे' इति पुनरभिधान प्रिकरण नियोगत परित्याग सूचयितुम् । तथा ययाऽऽख्यातम्-तीर्थकरगणधरादिमिर्येन प्रकारेण कथित तपैर घोरम् कातरपुरुपैरत्यन्तदुश्वर तपा=अनशनादिक प्रगमन स्वीकृत्य निर्विपयोधर्जितशब्दादिविपयो कामभोगपरित्यागात् , अथवा-विषयो देशस्तदहितो, राष्ट्रपरित्यागात् , निरामिपी = भोगामिपनिती विषयामिवर परित्यागाव, निःस्नेहौ-स्नेहरहितौ स्वजनादिप्रेमपरित्यागात् , निष्परिग्रो वामा 'चइत्ता' इत्यादि। . अन्वयार्थ-(विउल-विपुलम्) विशाल (रज्ज-राज्यम्) राज्यवैभव तथा (दुच्चए कामभोए य-दुस्त्यजान कामभोगान् च) दुस्स्पज-जो छोडना बहुत ही कठिन था ऐसे कामभोगोंका (चहत्ता-त्यत्वा) परित्याग करके पश्चात् (सम्म धम्म विणायित्ता-सम्यझ यथावस्थित-धर्म विज्ञाय) यथावस्थित धर्म श्रुतचारित्ररूप धर्म-के स्वरूपको अच्छी तरह विशेषरीतिसे समझकर (दुच्चए कामगुणे चहत्ता-दुस्त्यजान-कामगुणान् स्य । श्रेष्ठ शब्दादिकोंके विपयोंका त्रिकरण नियोगसे त्याग करके (जहर, यथा ख्यातम् ) तीर्थंकरादिकोंने जैसी विधिसे आराधन करना है उसी विधिके अनुसार (घोर-घोरम् ) कायरों द्वारा आचरित । सर्वथा अशक्य ऐसे (तव-तपः) अनशन आदि तपोको (पगिज्झस्वीकार करके (निविसया-निर्विषयौ) कामभोगादिकोंसे रहित-3 अपने देशसे रहित तथा (निरामिसा-निरामिपौ ) भोगरूप आणि रहित एव(निन्नेहा-निःस्नेहौ) स्वजनादिकके प्रेमवधनसे रहित "चइत्ता" त्यादि । ___ अन्वयार्थ-विउल-विपुलम् विशाण रज्ज-राज्यम् Plarय वैभव दुर कामभोए य-दुस्त्यजान् कामभोगान् च हुरत्यय न छ।यु ५५ ॥ ४४ सेवा भिनाजानी चइता-त्यस्त्वां परित्याग ४शन पछीथा सम्म धम्म विण यित्ता - सम्यक् - यथावस्थित - धर्म विज्ञाय यथास्थित धर्म श्रुतयारित्र३ धर्मनास्१३५२ साशश समलने दुच्चए कामगुणे चइत्ता-दुस्त्यजान् कामगुणा त्यक्त्वा श्रे०d vs विषयावर नि२५ त्रियागया त्या शन. जहाक्खाय यथाख्यातम्, तिथ शहीये २ विधियी आराधना ४२वानु मतावे विधि अनुसार घोर-घोरम् य॥ २२ ॥ २४ता नयी या तव तप अनशन आदि तपान। पगिज्झ-प्रगृह्य स्वी४१२ 3री निव्विसया-निर्विषयौ । Auथी २क्षित अथवा पोताना शिथी (२ भने निरामिसा-निरामिषो साग ३५साभिषयी २क्षिततेभ निन्नेहा-नि स्नेहो नाहना मा पनीर

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