Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1080
________________ ८६३ प्रियदर्शिनी टोका अ० १४ नन्ददत्त-नन्दमियादिपइजीपचरितम् इत्य भृगुपचन श्रुत्वा ब्राह्मणी माहनहेवे कुचा समईकमता, तयाणि जालाणि दलित्तु हसाँ । पलिति पुत्ता ये पैई ये मज्झ, ते ह कह नानुगमिस्समेका॥३६|| छाया-नभसीवक्रौञ्चाः समतिकामन्तस्ततानि, जालानि दलयिला हसाः! परियन्ति पुनौ च पविश्व मम, वानह कथ नानुगमिष्याम्येका ॥३६॥. टीका-'नहेव '-इत्यादि इव-यथा कोचाकोचपक्षिणो, हसा हसपक्षिणच ततानि-विस्तृतानि जालानि दलयित्वा-डिला तांस्तान देशान् समतिकामन्ताम्समुलड्यन्तः नभसिआकाशे परियन्ति-समन्ताद् गच्छन्ति । तथैव मम पुत्रौ च पतिथ जालोपममेतद् पिपयामिप्वग डिवा, तानि तानि सयमस्थानानि समतिकामन्तः, नभाकल्पे निरुपलिप्ते सयममार्ग परियन्ति=पिचरन्ति । तेपा विरहाद् एका असहायाह तान् इस प्रकार भृगुके वचन सुन कर ब्राह्मणीने क्या कहा-वह इस गाथा द्वारा प्रकट किया जाता है-'नहेच कुचा' इत्यादि । ___ अन्वयार्थ-(इव-इव) जैसे (कुचा-कौञ्चाः) कोच पक्षी एव (हसा-हसाः) हसपक्षी (तयाणि जालाणि-ततानि जालानि) विस्तृत जालों का (दलितु-दलयित्वा) छेदन करके भिन्न भिन्न देशोंको उल्लघन करते टए (नहेव समहकमता-नभसि समतिकामन्ति ) आकाशमें स्वतत्र उडते है उसी प्रकार मेरे पति और दोनों पुत्र जालोपम विषयों में अभिष्वगका छेदन करके उन २ सयमस्थानोंको अच्छी तरह पालन करते हुए नभः कल्प निरुपलिप्त सयममार्ग मे (पलिति-परियन्ति) जन विचरण करना चाहते हैं तो (एका-एका) असहाय बनी हुई (ह આ પ્રકારના ભગુના વચન સાંભળીને બ્રાહ્મણએ શું કહ્યું કે આ ગાથા द्वारा ४ामा आवे छे~" नहेव कुचा" त्यादि ___-पयार्थ:-इव-सभ कुचा-क्रोच्चा हौयपक्षी मने हसा इसा से पक्षा तयाणि जालाणि-ततानि जालानि पिस्त तानु दलिनु-दलयित्वा छेदन शन लिन भिन्न देशानुन ४शन नहेव समइफमता-नभसि समतिकामन्ति આકાશમાં સ્વતંત્ર ઉડે છે એ પ્રમાણે મારા પતિ અને બને પુત્ર જાલોપમ વિષયના અભિવ્ર ગનુ છેદન કરીને એ એ સયમરથાનેનુ સારી રીતે પાલન ४२॥ ४२ नम ६५ नि३५लित सयममार्गमा पलिंति-परियन्ति च्यारे विय२५ ४२वानु या छे त्यारे एका-एका असहाय जनेती ह-अहम् मेवाहुपा

Loading...

Page Navigation
1 ... 1078 1079 1080 1081 1082 1083 1084 1085 1086 1087 1088 1089 1090 1091 1092 1093 1094 1095 1096 1097 1098 1099 1100 1101 1102 1103 1104 1105 1106