Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1078
________________ 459 प्रियदर्शिनी टोका म० १४ नन्ददत्त-नन्दमियादिपइनीवचरितम् पुनरपि तदेराह मूलम्छिदित्त जालं अवलं व रोहिया, मच्छा जहा कामगुणे पहाय। धोरेयसीला तसा उदारा, धीरी हुँ भिक्खोयरिय चरति ॥३५॥ छाया-छिचा जालम् अपल वा रोहिता, मत्स्या यथा कामगुणान् प्रहाय । धोरेय शीलास्तपसा उदारा, धीरा हु मिक्षाचया चरन्ति ॥ ३५॥ टीका-'छिदित्तु'-इत्यादि । हे ब्राह्मणी ! यथा रोहिताः = रोहितजातीया मत्स्या अमल-जीर्णम्, वा शब्दात-सनलमपि जाल स्वती गपुन्छादिना डिचा निर्भयस्थाने सुखेन विचरन्ति । तथैव धौरेयशीला धुर भार वहन्ति ये ते धारेयास्तेपामिव शोलम्-उद्ढभारनिर्वहणसामयं येषां ते तथा, भारोद्वहनसमर्था - इत्यर्थः, तपसा अनशना. दिना उदारा प्रधानाः धीराः परीपहोपसर्गसहने, कामगुणान् रमणीयशन्दादि विपयरूपान् प्रहाय परित्यज्य, हु-निश्चयेन भिक्षाचया-चरन्ति । यया रोहित फिर इसी यातको कहते हैं-'छिदित्तु' इत्यादि । अन्वयार्थ हे ब्रामणि ! (जहा-यथा) जैसे (रोहिया-रोहिताः) रोहित जातिके मत्स्य (अचल जालम् वा छिदित्तु-अवल जाल वा छित्त्वा) जीर्ण अथवा अजीर्ण जालको अपनी तीक्ष्ण पुच्छ दाढ आदि दारा छेदित करके निर्भय स्थानमे सुखपूर्वक विचरते है उसी प्रकार (धोरेयसीलाधौरेयशीलाः) भारको चह्न करने वालोके जैसे अर्थात् रक्खे गये भारको वहन करनेकी शक्तिवाले एव (तवसा उदारा-तपसा उदाराः) अनशन आदि तपोंके आचरण करनेसे सर्व प्रधान तथा (वीरा-धीराः) परीषह और उपसर्गके सहन करनेमें धीर वीर व्यक्ति भी (कामगुणे पहाय-काम शथी मा पात 3-"डिदित्तु -त्याहि । मन्वयार्थ-प्राए ! जहा-यथा रेभ रोहिया-रोहिता शलिनतर्नु भाण्डं अवल जाल वा छिदित्तु-अनल जाल वा छित्वा मया माणुन પિતાની તીણ પુછડી, દાઢ, વગેરેથી કાપીને નિર્ભય થઈને સુખપૂર્વક વિચારે છે मे Na धौरेयसीला-धौरेयशीला सारने १९न ४२पावापानी भा मथात् रामवाभा मावस मारने पहुन ४२पानी सहित अने तवसा उदारा-तपसा उदारा मनशन मादि तपानु मायर ४२पामा सर्प प्रधान या धीरा-वीस परि५९ मन उसने सहन ७२पामा धारवीर व्य1ि पण कामगुणे पहाय

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