Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1082
________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० १४ नन्ददत्त-नन्दप्रियादिपजीवचरितम् ८६५ भृगुनामानि पुरोरितम् अभिनिप्कामन्त-दीक्षाय विनिर्गच्छन्त श्रुत्वाऽपि श्रुत्वैर तस्य पुरोहितस्य कुटुम्बसार-कुटुम्मस्याचारभूत धनधान्यादिक तु-निश्चयेन लुप्त यत्ननिर्नामा कुन्त-गृहन्तमित्यर्थः, राजान देवी कमलावती अभीक्ष्ण पुनः पुनः समुपाच-सम्यक् मकारेणानसीत् ॥ ___ यद्वा-द्वितीयपक्षेऽस्या छाया-"पुरोहित त समुत सदार, श्रुत्वाऽभिनिष्क्रम्य महाय भोगान् । कुटुम्मसार विपुलोत्तम त राजनमभीक्ष्ण समुवाच देवी।" अत्रेयं व्याख्या___ अभिनिष्क्रम्य = गृहानिर्गत्य भोगान् शन्दादीन् महाय-परित्यज्य, तथाविपुलोत्तमम्-विपुल प्रचुरम् , उत्तम-अप्ठम् , कुटुम्बसार-कुटुम्बम्बाधारभूतचनधान्यादिक च त्यतया समुत-सपुन सदार-सस्त्रीक त भृगुनामान पुरोहित पत्रजित श्रुत्वा पुरोहितस्प तत्-पचुर धनमभिलपन्त राजानम् देवी-कमलादेवी समीक्ष्ण= पुन पुनः समुपाच-सम्यकमकारेण अब्रवीत् ॥ ३७ ॥ ___ कमलापती राज्ञी यदब्रवीत्तदुच्यतेतथा ( भोगे पहाय-भोगान प्रदाय) शब्दादिक भोगोका परित्याग कर के एव (विउलुत्तम कुडयसारवि-पुलोत्तम कुटुम्बसार) बहुत एवं श्रेष्ठ ऐसे कुटुम्बके आधारभूत धनधान्यादिकका भी परित्याग करके (ससुय सदार-समृत सदारम् ) पुन और स्त्री सहित दीक्षित हुए (त पुरोयि सुच्चा-एत पुरोहित श्रुत्वा) उस पुरोहितको सुनकर (तत् "अभिलपन्तम्") अस्वामिक उसके उस प्रचुर धन धान्यादिके स्वामी बननेकी अभिलाषा वाले (राय-राजानम् ) राजासे (देवी-देवी) कमलावतीने (अभिक्खअभीक्षणम् ) वारवार (समुधाय-समुवाच ) सम्यक् मकारसे कहा ॥३७॥ भोगान् प्रहाय vasanान परित्या रीन, भने विउलुत्तम कुटुम्बसार -विपुलोत्तम कुटुम्बसार घ! भने ०७ मेवा टुमन माधारभूत धनधान्या. विनाप परित्याग ४शन ससुय सदार-ससुन सदारम् पुत्रो मन श्री साथीक्षित 'थये त पुरोहिय मुच्चा-एत पुरोहितं श्रुत्वा पुलितनी on अने. सस्वाभि એના ધનધાન્યની જાણ રાજાને થતાં એ પ્રચુ ધનધાન્યાદિકના સ્વામી બનવાની તેને -मनिषा aniत राय-राजानम् रानन. २७१ देवी-देवी भापती मन अंडारे अभिक्सण-अभिक्षण पा२पार समुवाय-समुवाच सारीशत समनव्या ॥३७॥

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