Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1059
________________ - - पितुर्वचनमाकये कुमारी पोचतः मच्चुणाऽभाहओ लोगो, जरीए परिवारिओ। अमोहा रंयणी वुत्ता, एंव ताय । वियोणह ॥२३॥ छाया--मृत्युनाऽभ्याहतो लोकः, जरसा परिवारितः । अमोघा रजनी उक्ता, एर तात । विजानीत ॥ २३ ॥ टीका-'मच्चुणा' इत्यादि। हे तात! लोका व्याधतुल्येन मृत्युना अभ्याइवा पीडितः । यतोऽसौ सर्वस्य जन्तोः पृष्ठे धावति । उक्तच तीर्थकरा गणधराः, सुरपतयश्चक्रिकेशमा रामाः। सर्वेऽपि मृत्युवशगा, शेपाणामत्र का गणना ॥१॥ इति । पिताकी इस पृच्छाका उत्तर इस प्रकार देते हैं-'मच्चुणा' इत्यादि । अन्वयार्थ हे तान ! इस लोकमे व्याधके स्थानापन्न मृत्यु है सो ('मच्चुणा लोगो अभाहओ-मृत्युना अय लोकः अभ्याहत) उस मृत्युसे यह लोक सदा पीडित हो रहा है । ऐसा इस लोकमें एक भी प्राणी नहीं है, न हुआ है और न होगा कि जिसके पीछे यह मृत्यु नहीं लगा हो। " तीर्थङ्करा गणधरा, सुरपतयश्चक्रि-केशवा-रामाः। सर्वोऽपि मृत्युवशगा, शेषाणामत्र का गणना " चाहे तीर्थकर हों, चाहे गणधर हों, चाहे सुरपति इन्द्र हो, चाहे चक्रवति हो केशव-वासुदेव, राम-बलदेव, कोई भी क्यो न हों सब ही इस मृत्युके वशगत बने हुए हैं। जब ऐसे २ भाग्यशालियोंकी यह दशा है પિતાના એ પ્રકારના પૂછવાને ઉત્તર આ પ્રમાણે આપે છે– " मच्चुणा" त्याला અન્વયા ...હે તાત! આ લેકમા શિકારીનું સ્થાન મૃત્યુ છે મgin लोगो अब्भाहओ-मृत्युना अय लोक अभ्याहत २मा मृत्युना लयथी an Ast ભય પામતા રહે છે આ લોકમાં એવું એક પણ પ્રાણી નથી થયું, તેમ થનાર પણું નથી, કે જેની પાછળ આ મૃત્યુને ભય ન હોય "तीर्थफरा गणधरा, सुरपतयश्चकि केशवा-रामाः । सर्वेऽपि मृत्युवशगा, शेषाणामात्र का गणना ॥" અન્વયાર્થ–ચાહેતીર્થકર હોય,ચાહે ગણધર હોય, ચાહેસુરપતિ ઈન્દ્ર હોય, ચાહે ચક્રવતી હોય, કે કેશવ-વાસુદેવ, રામ-બલરામ કોઈ પણ કેમ ન હોય સઘળા આ મૃત્યુના વશ ગત બનેલા છે. જ્યાં આવા આવા ભાગ્યશાળીની આવી

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