Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिकमरे
मणुयाण, वहूइ वासाड बहूइ वाससयाड वहूइ वाससहस्साड अणहसमग्गो हतुट्टो परमाउ पालयाहि, इजणसपडिवुडो चपाए णयरीए अण्णेसि च बहण गामा-गर-णयर-खेड'अणहसमग्गो' अनघसमग्र , अनघश्चासौ समग्रश्रेति विग्रह , निष्पाप परिपूर्णसम्पत्तिपरिवारादिभि सम्पन्नश्च, यद्वा-अनघेन=पुण्येन समग्र =पूर्ण , गद्वा-न अघसमग्र अनघस मग्र =सर्वविधपापरहित इत्यर्थ , 'हतुदो' हृष्टतुष्ट सन् 'पालयाहि' पालय 'परमाउ' परमायु -परमम् उत्कृष्टम् अपमृत्युवर्जितमसण्डित पूर्णमायु , तथा-'इट-जण-संपरिखुडो' इष्टजनसम्परिवृत =परिवारादिसमेत , चम्पाया नगर्या, 'अण्णेसिं च बहूण गामागर-गयर-खेड-कबड-दोगमुह-मडर-पट्टण-आसम-निगम-सवाह - सनिवे. साण' अयेपाञ्च बहुना ग्रामा-ssकर-नगर-खेट-कट-द्रोणमुस-भडम्ब-पटना-ऽऽश्र म-निगम-पाह-मनिवेगानाम्-तन-ग्राम साधारणजनवासस्थानम्, आकर = लपणादिसम्भवस्थानम् , नगरम् अविद्यमानकरम् , खेट-धूलीप्राफारवेष्टितम् , कर्वद-कुनगरम्, वाससहस्साई) बहुत वर्षांतक, बहुत सैकडों वर्षों तक, बहुत हजार वर्षों तक (अणहसम
गो) पूर्ण पुण्यशाली रहते हुए अथवा परिपूर्ण सम्पत्ति एव परिवार आदि से सपन्न अथवा सर्वविधपापरहित होते हुए ( हट्टतुट्ठो परमाउ पालयाहि ) सदा आनद और मतोष के साथ अखण्ड आयु भोगवे । (इट्ठ-जग-सपडिवुडो चपाए णयरीए अण्णेसिं च बहूण गामा-गर-णयर-खेड-कबड-दोणमुह-मडव-पट्टण-आसम-निगम सवाह सनिवेसाण आहेबच पोरेवच सामित्त भट्टित्त महत्तरगत आणाईसरसेणावच कारेमाणे पालेमाणे) इष्ट जनों से परिवृत होते हुए आप चपानगरी के तथा और भी बहुत से गांगा के, आफर-लपण आदि के उत्पत्ति स्थानों के, नगरों-जिनमे कर नहीं लगता हो घर से ४७ परसो सुधी, घा तर परसे। सुधी (अणहसमग्गो) पूर्ण પુણ્યશાલી રહેતા અથવા પરિપૂર્ણ સ પત્તિ તેમજ પરિવાર આદિથી સ પન્ન मथा सर्वशते ॥५२डित २डेता (हतुदो परमाउ पालयाहि) सहा मान तथा सतोषपूर्व ४ २५ 3 मायु सागवा, (इजणसपडिवुडो चपाए णयरीए अण्णेसिं च बहूण गामा गर-णयर-खेड-कव्वड-दोणमुह-मडब-पट्टण-आसम निगम सवाह-सन्निवेसाण आहेवच्च पोरेवन्च सामित्त भट्टित्त महत्तरगत्त आणाईसर सेणावच्च कारेमाणे पालेमाणे) भाणुस १3 परिकृत (वियेला) ચ પાનગરીના તથા બીજા પણ ઘણા ગામોના, આકરના–લવણ આદિના ઉત્પત્તિસ્થાનના, નગરોના–જેમાં કર ન લેવાતું હોય એવી વસ્તીઓના