Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औरणालियो इच्चेते सत्त परयणणिण्हगा केवल चरियालिंगसमाणा मिच्छास्वरूपे एकस्मिन् समये जीनोऽनुभवति इयेय पति ये ते क्रिया क्रियाद्वयानुभव प्ररूपिणो गाचार्यमतानुयायिा ५, 'तेरासिया' अंगगिका -त्रीन् रागीन् जीवा जीव-नोजीररूपान् यति ये ते राशिका नाशिनयाग्यापका इयर्थ -गेहगुमाचायमतानु सारिण ६, 'अद्धिया' अद्रिका -जीर कर्मणा नदो न भवति, कि तु कञ्चुकवस्तृष्टी भवति-इत्येव वदति ये तेऽद्धिका , गोष्टामाहिलमतावलम्पिन ७, उपलक्षण चतद्चान्तसम्यक्रवानामन्येषामपि । 'उच्चेते सत्त पश्यणणिण्डगा' इत्येते सर प्रव चननिहवा -प्रवचन-जिनागम निहनुरते-अपलपति, अयथा तदेकदेशस्य चाऽन्यु पगमात् ते प्रवचननिया , केवल-चरियालिंगसमाणा' चर्यालिगसमाना --चर्यया भिक्षाटनादिक्रियया लिङ्गेन-रजोहरणादिना च समाना =साधुतुन्या , ते पुन कोदशा एक जीव दो विरद्ध क्रियाओं का मा अनुभव करता है। भातवेदना एव उष्णवंदना य. परस्पर में एक समय में विरुद्ध हैं। इहे जीव एक समय म भोगता है । ये गगाचाय . मत के अनुयायी होते हैं ५। त्रैराशिक मतवालेका एसा कहना है कि जीवों की तीन राशियाह (१) जीव, (२) अजीर एव (३) नोजी। ये रोहगुप्त के मत के अनुयायी है ६ । अवद्धिक लोगाऐसी प्ररूपणा करते हैं कि जीव और कर्म का वध नहीं होता है। सिर्फ जीव के साथ फर्म कचुक की तरह स्पृष्ट रहा करते हैं । ये गोष्ठमाहिल के मत को मानने वाले होते है। यह उपलक्षणस्वरूप है, इससे सम्यक्त्वरहित क्रिया करने वालो का भी ग्रहण हुआ है। इस प्रकार ये सात प्रवचन-जिनागम के निहन है । (केवल चरियालिंगसमाणा) मात्रा चयाभिक्षा याचना आदि क्रिया तथा लिङ्ग-रजोहरणादि साधु के चिह्नों की अपेक्षा इनमे समानता (1) वैदिय-व्ययेमनी मेवी मान्यता छ ४०१ समयमा 22.४ ७ विरुद्ध डियामान पर मनुमप ४२छ शीतवेदना-तम उष्णवेदना मा में ५२२५२मा એક સમયમા વિરુદ્ધ છે તેમને જીવ એક સમયમાં ભગવે છે તેઓ ગગાसायना भतना गनुयायी हाय छ (6) त्रैराशिक-तया सभ' छ ॐ
वानी ३ राशिमा छ, (१) 04 (२.) तभर (3) नोवतमा रोडगुप्तना भतना मनुयायी (६) अद्धिक-तमा सेभ प्र३५g। ४२ કે જીવ અને કમને બધ થતું નથી માત્ર જીવની સાથે કર્મ કચુકની પઠ up રહેલા ચાટી રહેલા–લાગી રહેલા છે આ ગોષ્ઠમહિલના મતને માનવા વાળા હોય છે આ ઉપલક્ષણસ્વરૂપ છે, માટે સભ્યત્વરહિત ક્રિયા કરવા વાળાનું પણ ચહેણું થાય છે આ પ્રકારે આ સાત પ્રવચન-જિનાગમના નિબં छ कवल चरियालिंगसमाणा) मात्र या-मिक्षा यायना माहिहिया तथा