Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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गौमालिको कालं किच्चा उक्कोसेण उवरिमेसु गेवेजेनु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहि तेसि गई, एकतीस सागरोवमाड ठिई, परलोगस्स अणाराहगा, सेसं त चेव ॥ सु० ६१ ॥
मूलम् से जे इमे गामागार जाव सण्णिवेसेसु मणुया काल.किचा' कालमासे काल कृत्वा 'उकोमेण उकर्षग 'उपरिमेमु गेवेनेमु उपरितनेषु प्रैवेयकेषु 'देवत्ताए उववत्तारो भाति ' देवनेनोपपत्तारो भाति । 'तहि तेसिं गई' तत्र तेपा गति , 'एकतीस सागरोवमाइ ठिई एकत्रिंशमागरोपमानि स्थिति , परलोगस्स अणाराहगा' परलोकस्याऽनाराधका , 'सेस त चेर' शेप तदेव ।। सू० ६१॥
टीका-'से जे इमे' इत्यादि । ' से जे इमे 'अय य इमे 'गामा-गरजाव-सण्णिवेसेम' प्रामाऽऽ-कर-यावरसन्निवेशेषु 'मणुया भवति' मनुजा भवन्ति, इस प्रकार ये (बहूई वासाइ सामण्णपरियाय पाउणति) अनेक वर्षों तक इसी' प्रकार के आचार-विचारों मे तमय बने हुए श्रामण्यपर्याय का पालन करते रहते है । (पाउ णित्ता कालमासे काल किचा उक्कोसेण उपरिमेसु गेवेज्जेस देवत्ताए उववत्तारो भवति) पालकर काल अवसर काल करके अधिक से अधिक उपरिम अवयकों मे देव की पर्याय से उत्पन्न होते है । (तहिं तेसिं गई, एक्तीस सागरोवमाइ ठिई, परलोगस्स अणाहारगा, सेस त चेव) वहीं पर उनकी गति एव ३१ सागर प्रमाण स्थिति होती है। ये परलोक के अनाराधक कहे गये है । अपशिष्ट सम पूर्ववत् समझना चाहिये । सू ६१॥ __ 'से जे इमे' इत्यादि।
(से जे इमे) जो ये (गामा-गर-जाव-सण्णिवेसेसु मणुया भवति) ग्राम आकर यावत् सन्निवेशों मे मनुष्य रहते है, (त जहा) जैसे-(अप्पारमा अप्पपरिग्गहा ध्या ४२ छ (पाउणित्ता कालमासे काल किच्चा उस्कोसेण उवरिमेसु गेवेजेसु देवत्ताए 'उववत्तारो भवति) पाजीन डte अक्सरे ४८ ४शन पधारेभा वधारे
परिभ अवयमा वनी पर्यायथा उत्पन्न थाय छ (तहि तेसिं गई एक्कतीस सागरोवमाइ ठिई परलोगस्स अणाहारगा सेस त चेन) त्यसभनी गति, तेमा ૧ સાગર પ્રમ ણ સ્થિતિ હોય છે તેઓ પરલોકના અનારાધક કહેવાય છે બાકીનું બધું પૂર્વ પ્રમાણે સમજવું જોઈએ (સૂ ૬૦)
से जे इमे' त्यादि से जे इमे) तमा २ (गामागर जाव सण्णिवेसेसु मणुया भवति)