Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भोपातिकको रित्ता भत्त पञ्चखंति, ते बहुई भत्ताई अणसणाए छेदेति, छेदित्ता आलोइयपडिकता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा उकोसेणं अचुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तर्हि तेर्सि गई, बावीसं सागरोवमाइ ठिई, आराहगा, सेसं तहेव ॥सू०६३॥ विहरनि, 'विहरिता' विद्वत्य ‘भत्त पचक्खति' भक्त प्रत्यारयान्ति परित्यजति, 'अणसणाए छेदेति' अनशनया रिदति, 'छेइत्ता' ठित्वा 'आलोइयपडिकता' आलोचितप्रतिकान्ता, 'समाहिपत्ता' समाधिप्राप्ता, 'कालमासे' कालमासे 'काल किचा' काल कृत्वा 'उकोसेण अच्चुए कप्पे ' उत्कर्पतोऽप्युते कापे ' देवत्ताए उव वत्तारो भवति' देवत्वेन उपपत्तारो भवन्ति । 'तहिं तेसिं गई' तत्र तेषा गति , 'वावीस सागरोवमाइ ठिई ' द्वाविंशति सागरोपमानि स्थिति , आराहगा' आराधका , 'सेस तहेव' शेष तथैव ।। सू० ६३ ॥
पञ्चक्खति) पश्चात् अन्तिम समय में भक्तप्रत्याख्यान करते हैं, (ते बहूइ भनाइ अणसणाए छेदेति) वे अनेक भक्तों का अनशन द्वारा छेदन करते हैं, (छेदित्ता आलोइयपडिक्कता सामाहिपता कालमासे काल फिञ्चा) छेदन कर अपने पापस्थानों की आलोचना एवं प्रतिक्रमण करके वे समाधिसहित काल अवसर में काल कर (उकोसेण अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवति) जघय पहले देवलोक उत्कृष्ट बारहवें देवलोक अच्युतकल्प मे देवपर्याय से उत्पन्न होते हैं । (तहिं तेसिं गई, बावीस सागरोव राइ ठिई, आरहगा, सेस तहेव) प्रथम देवलोक मे इनको उत्कृष्ट दो सागरोपम और व रटवे देवलोक
५७ मत समये मत-प्रत्याभ्यान ४२ छ (ते बहूइ भत्ताइ अणसणाए छेदेति) तमा भने मतानु मनशन द्वारा छ। ४२छ (छेदित्ता आलोइयपडिक्कता समाहिपत्ता कालमासे काल किच्चा) छेदन ४शने पाताना पापस्थानानी આલોચના તેમજ પ્રતિક્રમણ કરીને તેઓ સમાધિ-સહિત કાલ અવસરમા કાલ
शन (क्कोसेण अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवति) urय पहेला देव લોક, ઉત્કૃષ્ટ બારમા દેવલેક અચુત ક૫મા દેવપર્યાયથી ઉત્પન્ન થાય છે (तहि तेसिं गई, बावीस सागरोवमाइ ठिई, आराहगा, सेस तहेव) प्रथम દેવલોકમાં તેમની ઉત્કૃષ્ટ બે સાગરેપમ અને બારમા દેવકમાં ઉત્કૃષ્ટ