Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मूलम्कंपिल्ले संभूओ, चित्तो पुण जाओ पुरिमतालंम्मि । सिटिकुलॅम्मि विसाले, धम्म सोण पवईओ ॥२॥ छाया-काम्पिल्ये सभूतचित्रः पुनर्जातः पुरिमताले ।
प्ठिले विशाले, धर्म श्रुत्वा मनजितः ॥ २॥ टीका-कपिल्ले' इत्यादि
काम्पिल्यनामके नगरे ब्रह्मरानचुलन्योः पुत्रत्वेन ब्रमदत्तेति नाम्ना सभूत: =सभूतजीवः समुत्पन्ना, चित्र-चित्र जीव पुरिमताले नगरे विशाले-बहुधन बहुपरिवारयुत्ते धनसारप्ठिफुले गुणसार इति नाम्ना जातासमुत्पमः । पुनजिनमार्गानुसारिणः सुभद्राचार्यस्य सविधे धर्म-श्रुत्रचारितलक्षण श्रुत्वा प्रणजितः भवन्यामग्रहीत् ॥२॥ वहासे चव कर ब्रह्मराज की रानी चुलनी की कुक्षिसे ब्रह्मदत्त नामक पुत्र उत्पन्न हुए ॥ १॥
यही कथाका सार इस सूत्र में सूत्रकार प्रकट करते है 'कपिल्ले'इत्यादि।
अन्वयार्थ (कपिल्ले-काम्पिल्ये) काम्पिल्य नामके नगरमें (सभूओसभूतः) सभूत का जीव ब्रह्मराज और चुलनी के सबसे ब्रह्मदत्त इस नाम से प्रसिद्ध पुन उत्पन्न हुआ तथा (चित्तो-चित्रः) चित्र का जीव प्रथम देवलोक नलिनीगुल्म के विमानसे चव कर (पुरिम तालानिम-पुरिमतालनगरे) परिमताल नामक नगर में (विसाले सिडिकुलम्मि-विशाले श्रेष्ठिकुले) बहुधन एव परिवार सपन्न होने से विशाल ऐसे धनसार श्रेष्ठि के कुल मे गुणसार नामक पुत्ररूप से (जाओजातः) उत्पन्न हुआ और (धस्म सोउण-धर्म श्रुत्वा) जिनमार्गानुसारी ચ્યવીને બ્રહ્મરાજાની રાણી ચુલનીની કૂખે બ્રાદત નામના પુત્રરૂપે ઉત્પન્ન થયા ના
मा ४थान सा२ मा सूरमा सूत्रधार प्रगट ४२ छ- कपिल्ले "-या
भ-पया:-कापिल्ले-कापिल्ये पिस्य नामना नगरमा सभूओ-सभूत સભૂતને જીવ બ્રહ્મરાજા અને રાણી ચુનીના સબંધથી બ્રહ્મદત્ત નામે પ્રસિદ્ધ स प थयेमन चित्तो-चित्र मिलना ७३ पुरिमतालम्मि-पुरिमतालनगरे परिभ नारमा विसाले सिद्विकुलम्मि-विशाले श्रेण्ठिकुले. मधन मन परिवार સંપન્ન હોવાથી વિશાળ એવા ધનસાર શેઠના કુળમાં ગુણસાર નામે પુત્રરૂપે ज्ञाओ-जात पनि थये। मने धम्म सोउण-धर्म श्रुत्वा मानानुसारी शुमार