Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनीटीका म० १३ चित्र-सभूतचरितवर्णनम्
। देवौ च देवलोके, आस्स आग महर्टिको।
एपा नो पष्ठिका जातिः, अन्योन्येन या विना ॥७॥ टीका-'दासा' इत्यादि
आवा दशाणे-दशार्णदेशे दासौ-शाण्डिल्य ब्राह्मणस्य यशोमत्या दास्या युगलपुत्रौ आस्स-अभूव, कालिचरे नगे-कालिनर नामके पर्वते मृगौ आस्त्र, मृतगगातीरे हसौ, काशिभूमी-काश्या धपाको चाण्डालो चअभूव ॥६॥
'देवा य' इत्यादि-च-पुन: देवलोके सौधर्मे प्रथमफल्पे पद्मगुल्मविमाने आवां महर्द्धिको देवौ आस्व । एपा नौ आवयोः पष्ठिका जाति:=पष्ठ जन्म, या अन्योन्येन विना नर्तते । अयं भारः-पञ्चम् पूर्नभवेपु आना सहोदरापास्व, परस्मिन्भवे वियुक्तावावाम् इति ॥ ६ ॥ ७ ॥ ____ हम आप दोनों सहोदरपनेसे कहा २ उत्पन्न हुए इसी बात को चनावर्ती प्रकट करते हं-'दासा' इत्यादि । . ___अन्वयार्थ-अपन दोनों पहिले (दसण्णे-दशाणे) दशार्णदेशमें (दासा-दासौ) शाण्डिल्यब्राह्मण की यशोमती दासी के पुत्र हुए वहा से मर कर(कालिंजरे-कालिञ्जरे)कालिजर पर्वत पर मिया-मृगौ) मृग हुए। उस पर्यायसे निकलकर (मयगतीरे हसा-मृतगगातीरे हसौ) मृतगगा के तीर पर हँस हुए। फिर उस पर्यायको छोडकर (कासि भूमीय-काशिभूमौ) फाशी नगरी में (सोवागा-श्वपाकी) चाडाल (आसी-आस्व) हुए। उस पर्यायको भी छोडकर फिर (देवलोगम्मी महिटिया देवा प आसी-देवलोके महर्दिको देवौ च आस्स) सौधर्म स्वर्ग में पद्मगुल्मविमानमे महर्दिक देव हुए फिर वहांसे चवे (णो-नो) अपनी (सा-एपा) यह (छविया जाइ
આપણે બને સહોદરપણથી કયા કયા ઉત્પન્ન થયા આ વાતને ચક્રपती प्रगट ४२ छे..--" दोसा"-त्याह
स्मन्वयार्थ --माप मन पसा दसण्णे-दशाण : देशमा दासा-दासौ शायि प्राथुनी यशोमती हसीना पुन यया त्याथी भरीर कालिंजरे-कालिं अरे लि०१२ पर्पत ५२ मिया-मृगौ ७२५ ३२ मत से पायथा नी४ जी मयगतीरे हसा - मृतगगातीरे हसौ भृतान जिनारे स च्या से पर्याय छोरा कासिभूमीय-काशिभूमौ १२ नगरीमा सोवागा-श्वपाको यातन त्या पुत्र ३ आसी-आस्व अपतर्या पर्यायने ५५ छोडीन पछी देवलोगम्मी महिढिया देवा य आसी-देवलोके महर्द्धिकौ देवौ च आस्व सौधर्मपामा शुभ विमानमा महा देव यया अन त्याथी २यवान मा एमा-एषा म