Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रियदर्शिनी टीका म० १४ नवदत्त-न दप्रियादिपइजीवचरितम्
209 वसुप्रियनोपदेशो विशालकीर्तिः विशाला विस्तृता कीर्तिर्यशो यस्य स तथा, इपुकारो नामराजा भूप । 'च' शब्दः पूरणे । च-पुनः पष्ठो धनदत्तनीवो देव कमलावती नाम तस्य राज्ञो देवी-पटराज्ञी वभून ॥ ३ ॥
एषु पट्सपि द्वयोः कुमारयो जैनेन्द्रशासने यया प्रतिपत्तिर्माता, तथाऽऽह
जाईजरामच्चुभयाभिभूया, वहि विहाराभिणिविदृचित्ता । संसार.कस्स विमोक्खणहा, दहण ते कामगुणे विरत्ता ॥४॥ छाया-जातिजरामृत्युभयाभिभूतो, पहिर्षिहाराभिनिविष्टचित्तौ ।
ससारचक्रस्य विमोक्षणार्थ, दृष्ट्वा तौ कामगुणे पिरक्तो ॥ ४ ॥ टीका--'जाईजरा'-इत्यादि--
जाविजरामृत्युमयाभिभूती-जातिर्जन्म, जरा-बाईकम्, मृत्युः मरणम् एभ्यो यद्भय तेन अभिभूता व्याप्ती, अत एव-पहिर्षिहारभिनिविष्टचित्तौ-पहिः-ससारापत्नी) उस पुरोहितकी यशा नामकी पत्नीके रूपमे उत्पन्न हुआ। (विसालकित्ती य-विशालकीर्तिश्च) पांचवा वसुप्रिय जीवदेव विशालकीर्ति सपन्न (इसुयारो राय-इपुकारः राजा) इपुकार नोनका राजा हुआ। और छठवा धनदत्त जीवदेव (कमलावई देवी-कमलावती देवी) उस राजाकी कमलावतो नामकी पत्नीके रूपमे उत्पन्न हुआ ॥३॥
इन छहों से इन दो कुमारोंको जिस तरह से जैनेन्द्र शासनमें प्रतिपत्ति हुई वह घात प्रकट की जाती है-'जाईजरा०' इत्यादि ।
अन्वयार्थ-(जाईजरा मच्चुभयाभिभूया-जातिजरामृत्युभयाभि भूतौ) जन्म, जरा, मरणके भयसे डरे हुए इसीलिये (चहि विहारा भिणिचिचिट्ठत्ता-चहिर्विहाराभिनिविष्टचित्तौ) ससारसे सर्वथा भिन्न जो या नामी पल्लीनाथे अत्यन्त यो विसालकित्तीय-विशालकीर्तिश्च यायमा सुप्रिया ७१ व विशाहीतिस पन्न इसुयारो राय-इपुकार राजा २ नामना २ion यया -मन छ। धनहत्तन। १ ५ कमलावई देवी-कमलावती देवी से सनी माती नामनी पत्नी३ अत्यन्न ५ ॥ ३॥
એ છએ જગામાના બે કુમારોને જે રીતે જેનેન્દ્ર શાસનમા પ્રીતિ G4-25 पात प्रगट ४२पामा आवे छे--" जाईजरा"-Jull !
अन्याय--जाईजरामच्चुभयाभिभूया-जातिजरामृत्युभयाभिभूतो म, १२॥ मन भरना यथा ७२६॥ मन से २८ बहिविहाराभिणिविट्ठचित्ता-बहिर्विहारा