Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिकतने अपलिक्खीणा भवति, तंजहा-(१) वेयणिजं '(२) आउयं ३ णाम गोत्त सम्बबहुए से वेयणिजे कम्मे भवइ, सव्वत्थोवे से आउए कम्मे भवइ। विसम समं करेड बंधणेहि ठिईहि य, विसमसमकरणयाए वधणेहि ठिईहि य । एव खलु केवली समोहणति, एव खल्ल केवली समुग्धाय गच्छति ॥ सू० ८०॥
कर्माशा 'अपलिक्खीणा' अपरिक्षीणा -अवशिष्टा 'भवति' भवति सति, 'त जहा' तयथा-'वेयणिज्ज' वेदनीयम्, 'आउय' आयु , 'णाम' नाम, 'गोत्त' गोत्रम् , 'सपाहुए से वेयणिजे कम्मे भवइ' सर्वबहुल तद् वेदनीय कर्म भवति, 'सम्वत्थोवे से आउए कम्मे भवइ' सर्वस्तोक तद् आयु कर्म भवति, 'विसम सम करेइ बधणेहि ठिईहि य' विषम सम करोति बधन -प्रदेशमन्धानुभागवधावाश्रित्येति भाव , स्थितिभिश्च: स्थितिब घविशेषैश्च, 'विसमसमकरणयाए बधणेहिं ठिईहि य एव खलु केवली समोहमति' अत्र पढयोजना-एव सल विपमसमारणाय-विषमझमगा समीकरणार्थ बधनै स्पितिभिश्च केलिन 'समोहणति' समुद्नन्ति-समुद्घात कुर्वन्ति ' एव खलु केवली समुग्याय गच्छति' एव खल्ल केरलिन समुद्घात गच्छति ॥ सू ८० ॥
है, (त जहा) वे ये है-(वेयणिज्ज आउय णाम गोत्त) वेदनाय, आयु, नाम और गोत्र । (सचवहए से वेयणिज्जे मम्मे भवट ) केली में सबसे अधिक स्थितिवाला उस समय वेदनाय कर्म रहता है। (सबथोवे से आउरा क्म्मे भवइ) तथा सबसे स्तोक आयुफर्म रहता है । (विसम सम करेइ वधणेहि ठिईहि य विसमसमकरणयाए वधणेहि ठिलिय) इस चिपमता को सम करने के लिये अथात् आयुकर्म की स्थिति के समान वेदनायानिक क्मों की स्थिति करने के लिये केली भगवान् समुद्रात करते है। अय
उभ मा २९ छ, ( त जहा) ते ॥ छ (वेयणिज्ज आउय णाम गोत्त) वहनीय , मायु, नाम भने गोत्र (सब्धबहुए से वेयणिज्जे कम्मे भवइ) उपजीमा सपथी पधारे स्थितिमा त समय वहनीय उभ २९ छ (सव्व त्थोवे से आज कम्मे भवइ) तथा सपथी ताठ मायुभ २७ छ (विसम सम करेइ बधणेहिं ठिईहि य, विसमसमकरणयास वधणेहिं ठिईहि य) मा વિષમતાને સમ કરવા માટે અર્થાત આયુકર્મની સ્થિતિ બરાબર વેદનીય