Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिकमा मूलम्-कइसमए ण भंते । आउज्जीकरणे पण्णत्ते ? गोयमा । असखेजसमइए अंतोमुहत्तिए पण्णत्ते ॥ सू०८२॥
____ अकृया खल समुद्घातम्, अनता केरग्निो जिना । जरामरग विप्रमुना , सिद्धि उरगतिं गता ॥ १ ॥ अयमाव -पण्मासायुपि अपशिष्ट सति येषा केवल ज्ञानमुरपन ते नियमत समुद्घात कुर्वन्ति, अये तु समुद्धात उति न वा कुन्ताति ।। सू० ८१ ॥
टीका-गौतम पृच्छति-'कदसमए ण' इत्यादि। 'कइसमए ण मते " कतिसमय खल भदत । 'आउज्जीकरणे पण्णत्ते आवर्जीकरण प्रज्ञमम् | आवर्यतेऽभिमुखीक्रियते मोक्षोऽनेनेति-आवर्जस्तस्य करणविवक्षाया विप्रत्यय । केवलिसमुद्घातात् पूर्व क्रिय नहीं है । क्यों कि (समुग्धाय अकित्ता) समुद्घात को नहीं भी करके (अणता केवली)
अनत केली (जिणा) जिन (जरामरणविप्पमुका) जाम, जरा एव मरण से रहित __ होकर (वरगइ) सिद्विस्वरूप सर्वोत्कृष्ट गति को प्राप्त हुए है। भावार्थ-जिनकी आयु ६
मास की बाकी बची है और अब उहे केवलज्ञान प्राप्त हुआ है तो ऐसी स्थिति म वे नियम से केवलिसमुद्घात करते है। बाकी के लिये ऐसा कोई नियम नहीं है कि समुद्घात करे ही । ॥ सू ८१ ॥
'कइसमए ण भते ।" इत्यादि।
प्रश्न-(भते । ) हे भदत ! (कइसमए ण आउज्जीकरणे पण्गत्ते) मोक्ष प्राप्ति का आवर्जीकरण कितने समय का होता है। उत्तर-(असखेज्जसमए अतोमुहु तिए पण्णत्ते) अरयात समय का अतर्मुहूर्त कहा है। जिसके द्वारा जीप मोक्ष के उरे सवा नियम नथी, उभ (समुग्धाय अपित्ता) समुधात न ५९! ४शन (अणता केवली) मनत उपक्षी (जिणा) निन (जरामरणविष्पमुक्का) सन्म, २ मा भरथी २डित थने (वरगइ) सिद्धिस्व३५ सर्वोत्कृष्ट ગતિને પ્રાપ્ત થયા છે ભાવાર્થ–જેમની આયુ છ માસ બાકી રહે છે અને હવે તેમને કેવળજ્ઞાન પ્રાપ્ત થયું છે, તે એવી સ્થિતિમાં તેઓ નિયમથી કેવલિસમુદઘાત કરે છે બાકીને માટે એવો કોઈ નિયમ નથી કે સમુદ્રઘાત ४२ ४ (सू ८१)
'कइसमए ण भते । त्यादि
प्रश्न--(भते ।) महन्त ! (कइसमए ण आउउनीकरणे पण्णत्त ) मोक्ष तिनु मा ४२६५ सा समयमा थाय छे उत्तर-( असलेज्जसमा अतोमहत्तिए पण्णत्ते) मध्यात समयनु मतभुत छ ना बास