Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पीयूषयपिणी-टीका सु.७४ पयलिममुद्घात विषये भगवदगीतमयो सयाद ६६९
मूलम्-~गोयमा। अय ण जवुद्दीचे दीये सव्वदीवसमुदाण सव्वन्भतराए सव्वखुदाए वढे तेल्लापूय-संठाण-सठिए
टीका-भगवानाह-'गोयमा' इया । 'गोयमा अय ण जद्दीचे दी' है गौतम ! अय बल जम्बूद्वीपो हाप 'सव्वदीवसमुदाण सबभतराए' मद्वीपसमुदाणा सवाभ्यन्तरक =मद्वीपसमुद्रम याता, 'सबसुहाए' सर्पसुद्धक =सद्वीपममुद्रापेक्षया ल्यु, 'पहे' वृत्त गोठाकार , मोट कर घनवृत्तोऽपि भरेत तयवरेदार्थ प्रतरवृत्ततामाह'तेलापूय-सठाण-सठिए' तैलाऽपूप-मस्थान-मस्थित - तैलमिति घृतस्योपलक्षणम्, तेन तैलापिकाऽप्पाऽऽकारमस्थित , 'बट्टे ' वृत्त , 'रचमवार-सठाण-सठिए' रथचक्रनालजाती है कि (उउमत्ये ण मणुस्से तेसि णिजरापोग्गलाण णो किंचि पण्णेण षण्ण जार जाणइ पासइ) उमस्य मनुष्य, उन केरला भगवान के उन निर्जराप्रभान पुद्गलों के वर्ण गर रस स्पर्श को न जान सकता है ? न देख सकता है ? || म ७३ ॥
'गोयमा । जय ण' इत्यादि।
(गोयमा!) हे गौतम ! (अय ण जाहीरे दी।) यह जद्वीप नामका द्वीप (सपदीवसमुदाण ) समस्त द्वीप और समुद्रों का (सबभतराए) सर्वप्रकार से मध्यवर्ती है । अत यह (गव्यमुडाए) सन से ओटा है । (नट्टे) यह वलय के ममान वृत्ताकार-गोठ है। (तेल्ला-पूय-सठाण-सठिए) तैलपक पुआ के आकार जैसा गोल है। (बट्टे रहचकमाल-सठाण-सठिए) स्थक पहिये जैसा गोल है। (हे पुरतर
रथी उपाय (उउमत्ये ण मणुस्से तेमि णिज्जरापोग्गलाण णो किंचि अण्णेण पण्ण जार जाणड पासइ) ७.५ मनुष्य ते उपयी भगवानना તે નિર્જરાપ્રધાન પુદગલોના વર્ણ, ગંધ, રસ, મ્પને નથી જાણી શકતા કે नयी भी शता? (स. ७३)
'गोयमा । अय ण' त्याह (गोयमा 1) गीतम । (अय ण जवुद्दीने तीने ) -
मामूही५ नामनी द्वीप (सव्वदीपसमुद्दाण) यम दीया भने समुद्रीनी (सन्चभतराए) सप २थी भव्यक्ती - Puथी त (मव्यसुहाग ) माथी नाना (पट्टे) ते पसयना (411) वृत्ताडा२ गोण ( तेल्लापूय-मठाण स ठिग) पुसाना Pार २३ . (पट्टे रहचकवाल-सठाण-सठिण) २यना पर वो (वढे पुस्खरकणिया-मठाण-सठिण) भजनी डबिया (टेपटिपणा- TII II min |