Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औषणतिच्या अणंतं अणुत्तरं निव्वाघायं निरावरण कसिण पडिपुण्णं केवलवरनाणदसणं उप्पादेति, तओ पच्छा सिन्झिहिंति जाव अंतं करेहिति ॥ सू०६७॥
मूलम्--एगच्चा पुण एगे भयंतारो पुव्वकम्मावसेसेणं 'निवाघाय' निर्व्याघात सूक्ष्मव्यवहितविप्रकृष्टविपयेपु मप्रतिहत, 'निरावरण ' निरावरण कर्मावरणरहित 'कसिण' कृत्स्न-सकलं, 'पडिपुण्ण ' प्रतिपूर्ण-मपूर्ण, 'केवल वरनाणदसण' केरलवरज्ञानदर्शनम् 'उप्पादेति' उत्पादयन्ति, 'तओ पच्छा सिज्झिहिंति ' तत पश्चात् सेत्स्यन्ति, 'जाव अत' यावत् अन्त-सर्वदु खानामन्त 'करेहिति' करिष्यन्ति ।। सू० ६७ ॥
'एगचा' इत्यादि । 'एगच्चा' एकाऽर्चा -एका असाधारणगुणत्वात् अद्वितीयाकेवलबरनाणदसण उप्पादेंति) चरम उच्छ्वास-नि श्वासों में अतरहित, अनुपम, निर्व्याधात-सूक्ष्म, व्यवहित एव विप्रकृष्ट विषय को हस्तामलकवत् जानने के लिये समर्थ, निरावरण-कर्मावरणरहित, कृत्स्न-सकल, एवं प्रतिपूर्ण-सपूर्ण केवलज्ञान एव केवलदर्शन की उत्पत्ति से विशिष्ट हो जाते है । (तओ पच्छा सिज्झिहिति जाव अत करेहिति) इसके पश्चात्
वे सिद्ध हो जाते है और उस अवस्था में उनके समस्त दुखों का एव उनके कारणभूत __ कर्मों का सर्वथा अभाव हो जाता है । सू०६७ ॥
'एगच्चा पुण' इत्यादि । इन अनगार भगवतों के बीच (एगे) कितनेक ऐसे भी अनगार भगवान होते
घाय निराचरण कसिण पडिपुण्ण केलवरनाणदसण उप्पादेति) यम शासનિ શ્વાસમા અતરહિત, અનુપમ, નિર્ચાઘાત–સૂક્ષમ વ્યવહિત તેમજ વિઝ કૃષ્ટ વિષયને હસ્તામલકવત્ જાણવા માટે સમર્થ, નિરાવરણ-કર્માવરણુરહિત, કસ્ત–સકળ, તેમજ પરિપૂર્ણસ પૂર્ણ કે વળજ્ઞાન તેમજ કેવળદર્શનની ઉત્પત્તિથી विशिष्ट थ य छ (तओ पच्छा सिज्झिहिति जाव अत करेहिति) त्यार પછી તેઓ સિદ્ધ થઈ જાય છે, અને તે અવસ્થામાં તેમના સમસ્ત દુ ખેને તેમજ તેમના કારણભૂત કર્મોને સર્વથા અભાવ થઈ જાય છે (સૂ ૬૭)
'एगच्चा पुण' त्यादि આ અગાર ભગવન્તની વચમાં (m) કેટલાક એવા પણ અનુગાર