Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पीयूषषपिणी-टीकासु ६२ अल्पारम्भादिमनुष्यषिपये भगवद्गीतमयो संपाद ६४५ वंधा परिकिलेसाओ पडिविरया जावजीवाए, एंगच्चाओ अपडिविरया, एगच्चाओ पहाण-मदण-वण्णग-विलेवण-सद्द-फरिसरस-रूव-गध-मल्ला-लकीराओ पडिविरयाजावज्जीवाए, एगच्चाओ
-वध-वर-परिक्लेशात्-तत्र कुट्टनम्-डेदनम्, पिट्टन वसादेरिव मुद्गरादिना हननम् , तर्जनम्=-जास्यसि रे नाल्म ! ' एतद्रूप भर्खन, ताडन-चपेटादिना हननम्, वध = प्राणव्यपरोपण, बध रज्जुपाशादिना बधनम्, परिक्लेगो माधोत्पादन तेपा समाहार तस्मात् 'पडिविरया' प्रतिविरता = निवृत्ता 'जापजीवाए' यावजीवम् , 'एगचाओ अपडिविरया' एकस्मात् अप्रतिविरता = अनिवृत्ता । 'एगचाओ पहाण-मदण-वण्णग-विलेवण-सह-फरिस-रस--स्व-गध - मल्ला-लकाराओ पडिविरया जावज्जीवाए ' एकस्मात् स्नान-मर्दन-वर्णक-विलेपन-गब्द-स्पर्श-रस
कोट्टण-पिट्टण-तज्जण: तालण-वह-वध-परिकिलेसाओ पडिविरया जावजीवाए) कोई २ ऐसे है जो कुछन-छेदन, पिट्टन-पीटना वस्त्रादिक का जिस प्रकार मुद्गरादिक से कूटना होता है उसी प्रकार मुद्गर-मूसल आदि से पीटना-कूटना, तर्जन-खोटे बचनों द्वारा भर्त्सना करना, ताडन-चपेटा थप्पड-आदि मारना, वध-प्रागन्यपरोपण करना, वध-रज्जुपाश आदि से किसी को बाधना, एव परिक्लेश-किसी को वाधा आदि उत्पन्न करमा, इन सब कार्यों से यावजीवन प्रतिपिरत है, ( एगचाओ अपडिविरया) कोई २ ऐसे है जो इन, क्रियाओं से प्रतिविरत नहीं है । ( एगचाओ ण्हाण-मद्दण-वण्णग-विले-- वण-सह-फरिस-रस-रूव-गंध-मल्ला-लकाराओ पडिविरया जावज्जीवाओ)
जावजावाए) आई मेवा १२ जुट्टन-छन, बिट्टन-पीट-पाहिन२ પ્રકારે સુગર આદિથી કૂટે છે તે પ્રકારે મુગર (ધેકા) મૂસલ (સાબેલા) આદિથી પીટવા–ફૂટવા, તર્જન-ખોટા ખરાબ વચને દ્વારા ભત્સના કરવી, તાડન-તમાચા ४ २५७ मा भारषु, १-श्राव्यपरा५ ४२७ (भारी नाम), १५દરડાના પાશ આદિથી કોઈને બાધવું, તેમજ પરિકલેશ–કેઈને બાધા (૯ ખ) माहि पलाया मा मधा आयोथी पनपन्त प्रतिविरत छ (एगच्चाओ अपडिविरया) सेवा छ र २मा लियासाथी अतिविरत नथी (एग च्चाओ ण्हाण-मद्द-चण्णग-विलेवण-सह-फरिस-रस-रूव-ध-मल्ला-लकाराओ.