Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोयपषषिणो-टोका स् २ गौतमस्थामिनो भगवरसमीपे गमनम् ४९९
मूलम्-तए ण से भगव गोयमे जायसड्ढे जायसंसए भार, नियन्त्रितचित्तवृत्तिमानियर्थ , 'सजमेण तवसा अप्पाण भावमाणे विहरइ' म्यमेन तपसाऽऽमान भावयन् वासयन् विहरति ।। सू० १॥
टीका-'तए ण से' यानि । 'तए ण से भगव गोयमे' तत खल स भगवान् गौतम 'जायसड्ढे' जातश्रद्ध -जाता प्राग्भृता नप्रति सामा येन प्रवृना श्रद्धा-तत्वनिर्णयविपयिका वाया यस्य स जातश्रद्ध , वक्ष्यमाणतत्वपग्निानेच्छावानियर्थ, 'जायससए' जातम्यय -जात =प्रवृत्त मायो यस्य स तथोक्त , सशयोत्पत्तिप्रकारस्वियम्-औपपातिस्पून हि-अचागगस्योपागम्, तेनाचागङ्गप्रथमश्रुतस्कघस्य प्रथमा___ध्ययन प्रथमोदेशके य आमन उपपात उक्त , तस्मिन् विषये वक्ष्यमाणमशयोपत्या जात
वाहर इधर-उधर नहीं हो सकता है । मानसिक प्रत्येक वृत्तिया इस अवस्था मे नियनित हो जाती है। ऐसे ये गौतम नामसे प्रसिद्ध इन्द्रभूति गणधर (सजमेण तवसा अप्पाण मावेमाणे विहरड) मयम एव तप से सदा अपनी आमा को भानित करते हुए विचरते थे।।सू १॥
'तए ण से' इयादि।
(तए ण) परिपत् चले जाने के बाद (से भगव गोयमे) वे भगवान् गौतम (जायसड्ढे) कि जिनके चित्तमें तत्व को निर्णय करने के लिये वान्चा हुई, कारण कि इहें (जायससए) इस प्रकार का मशय उद्भूत हुआ था कि यह औपपातिक सूत्र, आचाराग सूत्र का उपाग है, आचागग सूत्र के प्रथम अध्ययन के प्रथम उदेशक में जो आत्मा का उपपात कहा है सो किस प्रकार से कहा है ? (जायकोऊहल्ले) अत भगवान् मेरे सशयित તેમજ અત કરણની વૃત્તિઓ બહાર આમતેમ જઈ શકતી નથી માનસિક પ્રત્યેક વૃત્તિઓ આ અવસ્થામાં નિયત્રિત થઈ જાય છે એવા આ ગોતમ नाभ प्रसिद्ध दमृति मध२ (सजमेण तवसा अप्पाण भावेमाणे विहरइ) સયમ તેમ જ તપથી સદા પિતાની આત્માને ભાવિત કરતા કરતા વિચગ્લા डता (सू १)
'तए ण से' त्यहि
(तए ण) परिषद यानी गया पछी (से भगव गोयमे) सगवान गौतम (जायसड्ढे) नायित्तमा तपन निघुय पानी पछी ४, २Y तमन (जायससए) मा अडानी सशय सत्पन्न थयो त सा मीषाતિક સૂત્ર, આચારાગ સૂત્રનું ઉપાગ છે આચારાગ સૂત્રના પ્રથમ અધ્યયનના પ્રથમ ઉદેશમાં જે આત્માને ઉપપાત વર્ણવ્યું છે તે કેવા પ્રકારથી કહ્યો छ १ (जायकोऊहल्ले) उमगवान भास मा सशयना प्रश्न उत्तर न तो